الترجمة الهندية
ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الر ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ﴾
अलिफ, लाम, रा। ये खुली पुस्तक की आयतें हैं।
﴿إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ﴾
हमने इस क़ुर्आन को अरबी में उतारा है, ताकि तुम समझो[1]।
﴿نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ أَحْسَنَ الْقَصَصِ بِمَا أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ هَٰذَا الْقُرْآنَ وَإِنْ كُنْتَ مِنْ قَبْلِهِ لَمِنَ الْغَافِلِينَ﴾
(हे नबी!) हम बहुत अच्छी शैली में आपकी ओर इस क़ुर्आन की वह़्यी द्वारा आपसे इस कथा का वर्णन कर रहे हैं। अन्यथा आप (भी) इससे पूर्व (इससे) असूचित थे।
﴿إِذْ قَالَ يُوسُفُ لِأَبِيهِ يَا أَبَتِ إِنِّي رَأَيْتُ أَحَدَ عَشَرَ كَوْكَبًا وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ رَأَيْتُهُمْ لِي سَاجِدِينَ﴾
जब यूसुफ़ ने अपने पिता से कहाः हे मेरे पिता! मैंने स्वप्न देखा है कि ग्यारह सितारे, सूर्य तथा चाँद मुझे सज्दा कर रहे हैं।
﴿قَالَ يَا بُنَيَّ لَا تَقْصُصْ رُؤْيَاكَ عَلَىٰ إِخْوَتِكَ فَيَكِيدُوا لَكَ كَيْدًا ۖ إِنَّ الشَّيْطَانَ لِلْإِنْسَانِ عَدُوٌّ مُبِينٌ﴾
उसने कहाः हे मेरे पुत्र! अपना स्वप्न अपने भाईयों को न बताना[1], अन्यथा वे तेरे विरुध्द षड्यंत्र रचेंगे। वास्तव में, शैतान मानव का खुला शत्रु है।
﴿وَكَذَٰلِكَ يَجْتَبِيكَ رَبُّكَ وَيُعَلِّمُكَ مِنْ تَأْوِيلِ الْأَحَادِيثِ وَيُتِمُّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكَ وَعَلَىٰ آلِ يَعْقُوبَ كَمَا أَتَمَّهَا عَلَىٰ أَبَوَيْكَ مِنْ قَبْلُ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ عَلِيمٌ حَكِيمٌ﴾
और ऐसा ही होगा, तेरा पालनहार तुझे चुन लेगा तथा तुझे बातों का अर्थ सिखायेगा और तुझपर और याक़ूब के घराने पर अपना पुरस्कार पूरा करेगा[1]। जैसे इससे पहले तेरे पूर्वजों इब्राहीम और इस्ह़ाक़ पर पूरा किया। वास्तव में, तेरा पालनहार बड़ा ज्ञानी तथा गुणी है।
﴿۞ لَقَدْ كَانَ فِي يُوسُفَ وَإِخْوَتِهِ آيَاتٌ لِلسَّائِلِينَ﴾
वास्तव में, यूसुफ़ और उसके भाईयों (की कथा) में पूछने वालों के[1] लिए कई निशानियाँ हैं।
﴿إِذْ قَالُوا لَيُوسُفُ وَأَخُوهُ أَحَبُّ إِلَىٰ أَبِينَا مِنَّا وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّ أَبَانَا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ﴾
जब उन (भाईयों) ने कहाः यूसुफ़ और उसका भाई हमारे पिता को, हमसे अधिक प्रिय हैं। जबकि हम एक गिरोह हैं। वास्तव में, हमारे पिता खुली गुमराही में हैं।
﴿اقْتُلُوا يُوسُفَ أَوِ اطْرَحُوهُ أَرْضًا يَخْلُ لَكُمْ وَجْهُ أَبِيكُمْ وَتَكُونُوا مِنْ بَعْدِهِ قَوْمًا صَالِحِينَ﴾
यूसुफ़ को वध कर दो या उसे किसी धरती में फेंक दो। इससे तुम्हारे पिता का ध्यान केवल तुम्हारी तरफ हो जायेगा और इसके पश्चात् पवित्र बन जाओ।
﴿قَالَ قَائِلٌ مِنْهُمْ لَا تَقْتُلُوا يُوسُفَ وَأَلْقُوهُ فِي غَيَابَتِ الْجُبِّ يَلْتَقِطْهُ بَعْضُ السَّيَّارَةِ إِنْ كُنْتُمْ فَاعِلِينَ﴾
उनमें से एक ने कहाः यूसुफ़ को वध न करो, उसे किसी अन्धे कुएँ में डाल दो, उसे कोई क़ाफ़िला निकाल ले जायेगा, यदि कुछ करने वाले हो।
﴿قَالُوا يَا أَبَانَا مَا لَكَ لَا تَأْمَنَّا عَلَىٰ يُوسُفَ وَإِنَّا لَهُ لَنَاصِحُونَ﴾
उन्होंने कहाः हे हमारे पिता! क्या बात है कि यूसुफ़ के विषय में आप हमपर भरोसा नहीं करते? जबकि हम उसके शुभचिन्तक हैं।
﴿أَرْسِلْهُ مَعَنَا غَدًا يَرْتَعْ وَيَلْعَبْ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ﴾
उसे कल हमारे साथ वन में भेज दें। वह खाये-पिये और खेले-कूदे और हम उसके रक्षक (प्रहरी) हैं।
﴿قَالَ إِنِّي لَيَحْزُنُنِي أَنْ تَذْهَبُوا بِهِ وَأَخَافُ أَنْ يَأْكُلَهُ الذِّئْبُ وَأَنْتُمْ عَنْهُ غَافِلُونَ﴾
उस (पिता) ने कहाः मुझे बड़ी चिन्ता इस बात की है कि तुम उसे ले जाओ और मैं डरता हूँ कि उसे भेड़िया न खा जाये और तुम उससे असावधान रह जाओ।
﴿قَالُوا لَئِنْ أَكَلَهُ الذِّئْبُ وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّا إِذًا لَخَاسِرُونَ﴾
सब (भाईयों) ने कहाः यदि उसे भेड़िया खा गया, जबकि हम एक गिरोह हैं, तो वास्तव में, हम बड़े विनाश में हैं।
﴿فَلَمَّا ذَهَبُوا بِهِ وَأَجْمَعُوا أَنْ يَجْعَلُوهُ فِي غَيَابَتِ الْجُبِّ ۚ وَأَوْحَيْنَا إِلَيْهِ لَتُنَبِّئَنَّهُمْ بِأَمْرِهِمْ هَٰذَا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ﴾
फिर जब वे उसे ले गये और निश्चय किया कि उसे अंधे कुएं में डाल दें और हमने उस (यूसुफ़) की ओर वह़्यी की कि तुम अवश्य इन्हें इनका कर्म बताओगे और वे कुछ जानते न होंगे।
﴿وَجَاءُوا أَبَاهُمْ عِشَاءً يَبْكُونَ﴾
और वे संध्या को रोते हुए अपने पिता के पास आये।
﴿قَالُوا يَا أَبَانَا إِنَّا ذَهَبْنَا نَسْتَبِقُ وَتَرَكْنَا يُوسُفَ عِنْدَ مَتَاعِنَا فَأَكَلَهُ الذِّئْبُ ۖ وَمَا أَنْتَ بِمُؤْمِنٍ لَنَا وَلَوْ كُنَّا صَادِقِينَ﴾
सबने कहाः हे पिता! हम आपस में दौड़ करने लगे और यूसुफ को अपने सामान के पास छोड़ दिया और उसे भेड़िया खा गया और आप तो हमारा विश्वास करने वाले नहीं हैं, यद्यपि हम सच ही क्यों न बोल रहे हों।
﴿وَجَاءُوا عَلَىٰ قَمِيصِهِ بِدَمٍ كَذِبٍ ۚ قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنْفُسُكُمْ أَمْرًا ۖ فَصَبْرٌ جَمِيلٌ ۖ وَاللَّهُ الْمُسْتَعَانُ عَلَىٰ مَا تَصِفُونَ﴾
और वे यूसुफ़ के कुर्ते पर झूठा रक्त[1] लगाकर लाये। उसने कहाः बल्कि तुम्हारे मन ने तुम्हारे लिए एक सुन्दर बात बना ली है! तो अब धैर्य धारण करना ही उत्तम है और उसके संबन्ध में जो बात तुम बना रहे हो, अल्ला ही से सहायता माँगनी है।
﴿وَجَاءَتْ سَيَّارَةٌ فَأَرْسَلُوا وَارِدَهُمْ فَأَدْلَىٰ دَلْوَهُ ۖ قَالَ يَا بُشْرَىٰ هَٰذَا غُلَامٌ ۚ وَأَسَرُّوهُ بِضَاعَةً ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِمَا يَعْمَلُونَ﴾
और एक क़ाफ़िला आया। उसने अपने पानी भरने वाले को भेजा, उसने अपना डोल डाला, तो पुकाराः शुभ हो! ये तो एक बालक है और उसे व्यपारिक सामग्री समझकर छुपा लिया और अल्लाह भली-भाँति जानने वाला था जो वे कर रहे थे।
﴿وَشَرَوْهُ بِثَمَنٍ بَخْسٍ دَرَاهِمَ مَعْدُودَةٍ وَكَانُوا فِيهِ مِنَ الزَّاهِدِينَ﴾
और उसे तनिक मूल्य; कुछ गिनती के दिरहमों में बेच दिया और वे उसके बारे में कुछ अधिक की इच्छा नहीं रखते थे।
﴿وَقَالَ الَّذِي اشْتَرَاهُ مِنْ مِصْرَ لِامْرَأَتِهِ أَكْرِمِي مَثْوَاهُ عَسَىٰ أَنْ يَنْفَعَنَا أَوْ نَتَّخِذَهُ وَلَدًا ۚ وَكَذَٰلِكَ مَكَّنَّا لِيُوسُفَ فِي الْأَرْضِ وَلِنُعَلِّمَهُ مِنْ تَأْوِيلِ الْأَحَادِيثِ ۚ وَاللَّهُ غَالِبٌ عَلَىٰ أَمْرِهِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ﴾
और मिस्र के जिस व्यक्ति ने उसे खरीदा, उसने अपनी पत्नी से कहाः इसे आदर-मान से रखो। संभव है ये हमें लाभ पहुँचाये, अथवा हम इसे अपना पुत्र बना लें। इस प्रकार उसे हमने स्थान दिया और ताकि उसे बातों का अर्थ सिखायें और अल्लाह अपना आदेश पूरा करके रहता है। परन्तु अधिक्तर लोग जानते नहीं हैं।
﴿وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُ آتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا ۚ وَكَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ﴾
और जब वह जवानी को पहुँचा, तो हमने उसे निर्णय करने की शक्ति तथा ज्ञान प्रदान किया और इसी प्रकार हम सदाचारियों को प्रतिफल (बदला) देते हैं।
﴿وَرَاوَدَتْهُ الَّتِي هُوَ فِي بَيْتِهَا عَنْ نَفْسِهِ وَغَلَّقَتِ الْأَبْوَابَ وَقَالَتْ هَيْتَ لَكَ ۚ قَالَ مَعَاذَ اللَّهِ ۖ إِنَّهُ رَبِّي أَحْسَنَ مَثْوَايَ ۖ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ﴾
और वह जिस स्त्री[1] के घर में था, उसने उसके मन को रिझाया और द्वार बन्द कर लिए और बोलीः "आ जाओ"। उसने कहाः अल्लाह की शरण! वह मेरा स्वामी है। उसने मुझे अच्छा स्थान दिया है। वास्तव में, अत्याचारी सफल नहीं होते।
﴿وَلَقَدْ هَمَّتْ بِهِ ۖ وَهَمَّ بِهَا لَوْلَا أَنْ رَأَىٰ بُرْهَانَ رَبِّهِ ۚ كَذَٰلِكَ لِنَصْرِفَ عَنْهُ السُّوءَ وَالْفَحْشَاءَ ۚ إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُخْلَصِينَ﴾
और उस स्त्री ने उसकी इच्छा की और वह (यूसुफ़) भी उसकी इच्छा करते, यदि अपने पालनहार का प्रमाण न देथ लेते[1]। इस प्रकार, हमने (उसे सावधान) किया ताकि उससे बुराई तथा निर्लज्जा को दूर कर दें। वास्तव में, वह हमारे शुध्द भक्तों में था।
﴿وَاسْتَبَقَا الْبَابَ وَقَدَّتْ قَمِيصَهُ مِنْ دُبُرٍ وَأَلْفَيَا سَيِّدَهَا لَدَى الْبَابِ ۚ قَالَتْ مَا جَزَاءُ مَنْ أَرَادَ بِأَهْلِكَ سُوءًا إِلَّا أَنْ يُسْجَنَ أَوْ عَذَابٌ أَلِيمٌ﴾
और दोनों द्वार की ओर दौड़े और उस स्त्री ने उसका कुर्ता पीछे से फाड़ दिया और दोनों ने उसके पति को द्वार के पास पाया। उस (स्त्री) ने कहाः जिसने तेरी पत्नी के साथ बुराई का निश्चय किया, उसका दण्ड इसके सिवा क्या है कि उसे बंदी बना दिया जाये अथवा उसे दुःखदायी यातना (दी जाये)?
﴿قَالَ هِيَ رَاوَدَتْنِي عَنْ نَفْسِي ۚ وَشَهِدَ شَاهِدٌ مِنْ أَهْلِهَا إِنْ كَانَ قَمِيصُهُ قُدَّ مِنْ قُبُلٍ فَصَدَقَتْ وَهُوَ مِنَ الْكَاذِبِينَ﴾
उसने कहाः इसीने मुझे रिझाना चाहा था और उस स्त्री के घराने से एक साक्षी ने साक्ष्य दिया कि यदि उसका कुर्ता आगे से फाड़ा गया है, तो वह सच्ची है तथा वह झूठा है।
﴿وَإِنْ كَانَ قَمِيصُهُ قُدَّ مِنْ دُبُرٍ فَكَذَبَتْ وَهُوَ مِنَ الصَّادِقِينَ﴾
और यदि उसका कुर्ता पीछे से फाड़ा गया है, तो वह झूठी और वह (यूसुफ़) सच्चा है।
﴿فَلَمَّا رَأَىٰ قَمِيصَهُ قُدَّ مِنْ دُبُرٍ قَالَ إِنَّهُ مِنْ كَيْدِكُنَّ ۖ إِنَّ كَيْدَكُنَّ عَظِيمٌ﴾
फिर जब उस (पति) ने देखा कि उसका कुर्ता पाछे से फाड़ा गया है, तो कहाः वास्तव में, ये तुम स्त्रियों की चालें हैं और तुम्हारी चालें बड़ी घोर होती हैं।
﴿يُوسُفُ أَعْرِضْ عَنْ هَٰذَا ۚ وَاسْتَغْفِرِي لِذَنْبِكِ ۖ إِنَّكِ كُنْتِ مِنَ الْخَاطِئِينَ﴾
हे यूसुफ़! तुम इस बात को जाने दो और (हे स्त्री!) तू अपने पाप की क्षमा माँग, वास्तव में, तू पापियों में से है।
﴿۞ وَقَالَ نِسْوَةٌ فِي الْمَدِينَةِ امْرَأَتُ الْعَزِيزِ تُرَاوِدُ فَتَاهَا عَنْ نَفْسِهِ ۖ قَدْ شَغَفَهَا حُبًّا ۖ إِنَّا لَنَرَاهَا فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ﴾
नगर की कुछ स्त्रियों ने कहाः अज़ीज़ (प्रमुख अधिकारी) की पत्नी, अपने दास को रिझा रही है! उसे प्रेम ने मुग्ध कर दिया है। हमारे विचार में वह खुली गुमराही में है।
﴿فَلَمَّا سَمِعَتْ بِمَكْرِهِنَّ أَرْسَلَتْ إِلَيْهِنَّ وَأَعْتَدَتْ لَهُنَّ مُتَّكَأً وَآتَتْ كُلَّ وَاحِدَةٍ مِنْهُنَّ سِكِّينًا وَقَالَتِ اخْرُجْ عَلَيْهِنَّ ۖ فَلَمَّا رَأَيْنَهُ أَكْبَرْنَهُ وَقَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ وَقُلْنَ حَاشَ لِلَّهِ مَا هَٰذَا بَشَرًا إِنْ هَٰذَا إِلَّا مَلَكٌ كَرِيمٌ﴾
फिर जब उसने उन स्त्रियों की मक्कारी की बात सुनी, तो उन्हें बुला भेजा और उनके (आतिथ्य) के लिए गाव-तकिये लगवाये और प्रत्येक स्त्री को एक छुरी दे दी[1]। उसने (यूसुफ़ से) कहाः इनके समक्ष "निकल आ"। फिर जब उन स्त्रियों ने उसे देखा, तो चकित (दंग) होकर अपने हाथ काट बैठीं तथा पुकार उठीं: अल्लाह पवित्र है! ये मनुष्य नहीं ये तो कोई सम्मानित फ़रिश्ता है।
﴿قَالَتْ فَذَٰلِكُنَّ الَّذِي لُمْتُنَّنِي فِيهِ ۖ وَلَقَدْ رَاوَدْتُهُ عَنْ نَفْسِهِ فَاسْتَعْصَمَ ۖ وَلَئِنْ لَمْ يَفْعَلْ مَا آمُرُهُ لَيُسْجَنَنَّ وَلَيَكُونًا مِنَ الصَّاغِرِينَ﴾
उसने कहाः यही वह है, जिसके बारे में तुमने मेरी निंदा की है। वास्तव में, मैंने ही उसे रिझाया था। मगर वह बच निकला और यदि, वह मेरी बात न मानेगा, तो अवश्य बंदी बना दिया जायेगा और अपमानितों में हो जायेगा।
﴿قَالَ رَبِّ السِّجْنُ أَحَبُّ إِلَيَّ مِمَّا يَدْعُونَنِي إِلَيْهِ ۖ وَإِلَّا تَصْرِفْ عَنِّي كَيْدَهُنَّ أَصْبُ إِلَيْهِنَّ وَأَكُنْ مِنَ الْجَاهِلِينَ﴾
यूसुफ़ ने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे क़ैद उससे अधिक प्रिय है, जिसकी ओर ये औरतें मुझे बुला रही हैं और यदि तूने मुझसे इनके छल को दूर नहीं किया, तो मैं इनकी ओर झुक पड़ूँगा और अज्ञानों में से हो जाऊँगा।
﴿فَاسْتَجَابَ لَهُ رَبُّهُ فَصَرَفَ عَنْهُ كَيْدَهُنَّ ۚ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ﴾
तो उसके पालनहार ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उससे उनके छल को दूर कर दिया। वास्तव में, वह बड़ा सुनने-जानने वाला है।
﴿ثُمَّ بَدَا لَهُمْ مِنْ بَعْدِ مَا رَأَوُا الْآيَاتِ لَيَسْجُنُنَّهُ حَتَّىٰ حِينٍ﴾
फिर उन लोगों[1] ने उचित समझा, इसके पश्चात् कि निशानियाँ देख[2] लीं कि उस (यूसुफ़) को एक अवधि तक के लिए बंदी बना दें।
﴿وَدَخَلَ مَعَهُ السِّجْنَ فَتَيَانِ ۖ قَالَ أَحَدُهُمَا إِنِّي أَرَانِي أَعْصِرُ خَمْرًا ۖ وَقَالَ الْآخَرُ إِنِّي أَرَانِي أَحْمِلُ فَوْقَ رَأْسِي خُبْزًا تَأْكُلُ الطَّيْرُ مِنْهُ ۖ نَبِّئْنَا بِتَأْوِيلِهِ ۖ إِنَّا نَرَاكَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ﴾
और उसके साथ क़ैद में दो युवकों ने प्रवेश किया। उनमें से एक ने कहाः मैंने स्वप्न देखा है कि शराब निचोड़ रहा हूँ और दूसरे ने कहाः मैंने स्वप्न देखा है कि अपने सिर के ऊपर रोटी उठाये हुए हूँ, जिसमें से पक्षी खा रहे हैं। हमें इसका अर्थ (स्वप्नफल) बता दो। हम देख रहे हैं कि तुम सदाचारियों में से हो।
﴿قَالَ لَا يَأْتِيكُمَا طَعَامٌ تُرْزَقَانِهِ إِلَّا نَبَّأْتُكُمَا بِتَأْوِيلِهِ قَبْلَ أَنْ يَأْتِيَكُمَا ۚ ذَٰلِكُمَا مِمَّا عَلَّمَنِي رَبِّي ۚ إِنِّي تَرَكْتُ مِلَّةَ قَوْمٍ لَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَهُمْ بِالْآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ﴾
यूसुफ़ ने कहाः तुम्हारे पास तुम्हारा वह भोजन नहीं आयेगा, जो तुम दोनों को दिया जाता है, परन्तु मैं तुम दोनों को उसका अर्थ (फल) बता दूँगा; ये उन बातों में से है, जो मेरे पालनहार ने मुझे सिखायी हैं। मैंने उस जाति का धर्म तज दिया है, जो अल्लाह पर ईमान नहीं रखती और वही परलोक को नकारने वाले हैं।
﴿وَاتَّبَعْتُ مِلَّةَ آبَائِي إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ ۚ مَا كَانَ لَنَا أَنْ نُشْرِكَ بِاللَّهِ مِنْ شَيْءٍ ۚ ذَٰلِكَ مِنْ فَضْلِ اللَّهِ عَلَيْنَا وَعَلَى النَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ﴾
और अपने पूर्वजों; इब्राहीम, इस्ह़ाक़ और याक़ूब के धर्म का अनुसरण किया है। हमारे लिए वैध नहीं कि किसी चीज़ को अल्लाह का साझी बनायें। ये अल्लाह की दया है, हमपर और लोगों पर। परन्तु अधिक्तर लोग कृतज्ञ नहीं होते[1]।
﴿يَا صَاحِبَيِ السِّجْنِ أَأَرْبَابٌ مُتَفَرِّقُونَ خَيْرٌ أَمِ اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ﴾
हे मेरे क़ैद के दोनों साथियो! क्या विभिन्न पूज्य उत्तम हैं या एक प्रभुत्वशाली अल्लाह??
﴿مَا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِهِ إِلَّا أَسْمَاءً سَمَّيْتُمُوهَا أَنْتُمْ وَآبَاؤُكُمْ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ بِهَا مِنْ سُلْطَانٍ ۚ إِنِ الْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ۚ أَمَرَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ ۚ ذَٰلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ﴾
तुम अल्लाह के सिवा जिसकी इबादत (वंदना) करते हो, वे केवल नाम हैं, जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं। अल्लाह ने उनका कोई प्रमाण नहीं उतारा है। शासन तो केवल अल्लाह का है। उसने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो। यही सीधा धर्म है। परन्तु अधिक्तर लोग नहीं जानते हैं।
﴿يَا صَاحِبَيِ السِّجْنِ أَمَّا أَحَدُكُمَا فَيَسْقِي رَبَّهُ خَمْرًا ۖ وَأَمَّا الْآخَرُ فَيُصْلَبُ فَتَأْكُلُ الطَّيْرُ مِنْ رَأْسِهِ ۚ قُضِيَ الْأَمْرُ الَّذِي فِيهِ تَسْتَفْتِيَانِ﴾
हे मेरे क़ैद के दोनों साथियो! रहा तुममें से एक, तो वह अपने स्वामि को शराब पिलायेगा तथा दूसरा, तो उसको फाँसी दी जायेगी और पक्षी उसके सिर में से खायेंगे। उसका निर्णय कर दिया गया है, जिसके संबन्ध में तुम दोनों प्रश्न कर रहे थे।
﴿وَقَالَ لِلَّذِي ظَنَّ أَنَّهُ نَاجٍ مِنْهُمَا اذْكُرْنِي عِنْدَ رَبِّكَ فَأَنْسَاهُ الشَّيْطَانُ ذِكْرَ رَبِّهِ فَلَبِثَ فِي السِّجْنِ بِضْعَ سِنِينَ﴾
और उससे कहा, जिसे समझा कि वह उन दोनों में से मुक्त होने वाला हैः मेरी चर्चा अपने स्वामी के पास कर देना। तो शैतान ने उसे अपने स्वामी के पास, उसकी चर्चा करने को भुला दिया। अतः वह (यूसुफ़) कई वर्ष क़ैद में रह गया।
﴿وَقَالَ الْمَلِكُ إِنِّي أَرَىٰ سَبْعَ بَقَرَاتٍ سِمَانٍ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌ وَسَبْعَ سُنْبُلَاتٍ خُضْرٍ وَأُخَرَ يَابِسَاتٍ ۖ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَفْتُونِي فِي رُؤْيَايَ إِنْ كُنْتُمْ لِلرُّؤْيَا تَعْبُرُونَ﴾
और (एक दिन) राजा ने कहाः मैं सात मोटी गायों को सपने में देखता हूँ, जिनको सात दुबली गायें खा रही हैं और सात हरी बालियाँ हैं और दूसरी सात सूखी हैं। हे प्रमुखो! मुझे मेरे स्वप्न के सम्बंध में बताओ, यदि तुम स्वप्न-फल बता सकते हो?
﴿قَالُوا أَضْغَاثُ أَحْلَامٍ ۖ وَمَا نَحْنُ بِتَأْوِيلِ الْأَحْلَامِ بِعَالِمِينَ﴾
सबने कहाः ये तो उलझे स्वप्न की बातें हैं और हम ऐसे स्वप्नों का अर्थ (फल) नहीं जानते।
﴿وَقَالَ الَّذِي نَجَا مِنْهُمَا وَادَّكَرَ بَعْدَ أُمَّةٍ أَنَا أُنَبِّئُكُمْ بِتَأْوِيلِهِ فَأَرْسِلُونِ﴾
और उसने कहा, जो दोनों में से मुक्त हुआ था और उसे एक अवधि के पश्चात्, बात याद आयी थीः मैं तुम्हें इसका फल (अर्थ) बता दूँगा, तुम मुझे भेज[1] दो।
﴿يُوسُفُ أَيُّهَا الصِّدِّيقُ أَفْتِنَا فِي سَبْعِ بَقَرَاتٍ سِمَانٍ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌ وَسَبْعِ سُنْبُلَاتٍ خُضْرٍ وَأُخَرَ يَابِسَاتٍ لَعَلِّي أَرْجِعُ إِلَى النَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَعْلَمُونَ﴾
हे यूसुफ़! हे सत्यवादी! हमें सात मोटी गायों के बारे में बताओ, जिन्हें सात दुबली गायें खा रही हैं और सात हरी बालियाँ हैं और सात सूखी, ताकि लोगों के पास वापस जाऊँ और ताकि वे जान[1] लें।
﴿قَالَ تَزْرَعُونَ سَبْعَ سِنِينَ دَأَبًا فَمَا حَصَدْتُمْ فَذَرُوهُ فِي سُنْبُلِهِ إِلَّا قَلِيلًا مِمَّا تَأْكُلُونَ﴾
यूसुफ़ ने कहाः तुम सात वर्ष निरन्तर खेती करते रहोगे। तो जो कुछ काटो, उसे उसकी बाली में छोड़ दो, परन्तु थोड़ा जिसे खाओगे। ( उसे बालियों से निकाल लो।)
﴿ثُمَّ يَأْتِي مِنْ بَعْدِ ذَٰلِكَ سَبْعٌ شِدَادٌ يَأْكُلْنَ مَا قَدَّمْتُمْ لَهُنَّ إِلَّا قَلِيلًا مِمَّا تُحْصِنُونَ﴾
फिर इसके पश्चात् सात कड़े अकाल के वर्ष होंगे, जो उसे खा जायेंगे, जो तुमने उनके लिए पहले से रखा है, परन्तु उसमें से थोड़ा, जिसे तुम सुरक्षित रखोगे।
﴿ثُمَّ يَأْتِي مِنْ بَعْدِ ذَٰلِكَ عَامٌ فِيهِ يُغَاثُ النَّاسُ وَفِيهِ يَعْصِرُونَ﴾
फिर इसके पश्चात् एक ऐसा वर्ष आयेगा, जिसमें लोगों पर जल बरसाया जायेगा तथा उसीमें वे (रस) निचोड़ेंगे।
﴿وَقَالَ الْمَلِكُ ائْتُونِي بِهِ ۖ فَلَمَّا جَاءَهُ الرَّسُولُ قَالَ ارْجِعْ إِلَىٰ رَبِّكَ فَاسْأَلْهُ مَا بَالُ النِّسْوَةِ اللَّاتِي قَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ ۚ إِنَّ رَبِّي بِكَيْدِهِنَّ عَلِيمٌ﴾
और राजा ने कहाः उसे मेरे पास लाओ और जब यूसुफ़ के पास भेजा हुआ आया, तो आपने उससे कहा कि अपने स्वामी के पास वापस जाओ[1] और उससे पूछो कि उन स्त्रियों की क्या दशा है, जिन्होंने अपने हाथ काट लिए थे? वास्तव में, मेरा पालनहार उन स्त्रियों के छल से भली-भाँति अवगत है।
﴿قَالَ مَا خَطْبُكُنَّ إِذْ رَاوَدْتُنَّ يُوسُفَ عَنْ نَفْسِهِ ۚ قُلْنَ حَاشَ لِلَّهِ مَا عَلِمْنَا عَلَيْهِ مِنْ سُوءٍ ۚ قَالَتِ امْرَأَتُ الْعَزِيزِ الْآنَ حَصْحَصَ الْحَقُّ أَنَا رَاوَدْتُهُ عَنْ نَفْسِهِ وَإِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ﴾
(राजा) ने उन स्त्रियों से पूछाः तुम्हारा क्या अनुभव है, उस समय का, जब तुमने यूसुफ़ के मन को रिझाया था? सबने कहाः अल्लाह पवित्र है! उसपर हमने कोई बुराई का प्रभाव नहीं जाना। तब अज़ीज़ की पत्नी बोल उठीः अब सत्य उजागर हो गया, वास्तव में, मैंने ही उसके मन को रिझाया था और निःसंदेह वह सत्यवादियों में है[1]।
﴿ذَٰلِكَ لِيَعْلَمَ أَنِّي لَمْ أَخُنْهُ بِالْغَيْبِ وَأَنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي كَيْدَ الْخَائِنِينَ﴾
ये (यूसुफ़ ने) इसलिए किया, ताकि उसे (अज़ीज़ को) विश्वास हो जाये, कि मैंने गुप्त रूप से उसके साथ विश्वास घात नहीं किया और वस्तुतः, अल्लाह विश्वासघातियों से प्रेम नहीं करता।
﴿۞ وَمَا أُبَرِّئُ نَفْسِي ۚ إِنَّ النَّفْسَ لَأَمَّارَةٌ بِالسُّوءِ إِلَّا مَا رَحِمَ رَبِّي ۚ إِنَّ رَبِّي غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾
और मैं अपने मन को निर्दोश नहीं कहता, मन तो बुराई पर उभारता है; परन्तु जिसपर मेरा पालनहार दया कर दे। मेरा पालनहार अति क्षमाशील तथा दयावान् है।
﴿وَقَالَ الْمَلِكُ ائْتُونِي بِهِ أَسْتَخْلِصْهُ لِنَفْسِي ۖ فَلَمَّا كَلَّمَهُ قَالَ إِنَّكَ الْيَوْمَ لَدَيْنَا مَكِينٌ أَمِينٌ﴾
राजा ने कहाः उसे मेरे पास लाओ, उसे मैं अपने लिए विशेष कर लूँ और जब (राजा ने) उस (यूसुफ़) से बात की, तो कहाः वस्तुतः तू आज हमारे पास आदर्णीय भरोसा, करने योग्य है।
﴿قَالَ اجْعَلْنِي عَلَىٰ خَزَائِنِ الْأَرْضِ ۖ إِنِّي حَفِيظٌ عَلِيمٌ﴾
उस (यूसुफ़) ने कहाः मुझे देश का कोषाधिकारी बना दीजिये। वास्तव में मैं, रखवाला, बड़ा ज्ञानी हूँ।
﴿وَكَذَٰلِكَ مَكَّنَّا لِيُوسُفَ فِي الْأَرْضِ يَتَبَوَّأُ مِنْهَا حَيْثُ يَشَاءُ ۚ نُصِيبُ بِرَحْمَتِنَا مَنْ نَشَاءُ ۖ وَلَا نُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ﴾
और इस प्रकार, हमने यूसुफ को उस धरती (देश) में अधिकार दिया, वह उसमें जहाँ चाहे, रहे। हम अपनी दया जिसे चाहें, प्रदान करते हैं और सदाचारियों का प्रतिफल व्यर्थ नहीं करते।
﴿وَلَأَجْرُ الْآخِرَةِ خَيْرٌ لِلَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ﴾
और निश्चय परलोक का प्रतिफल उन लोगों के लिए उत्तम है, जो ईमान लाये और अल्लाह से डरते रहे।
﴿وَجَاءَ إِخْوَةُ يُوسُفَ فَدَخَلُوا عَلَيْهِ فَعَرَفَهُمْ وَهُمْ لَهُ مُنْكِرُونَ﴾
और यूसुफ़ के भाई आये[1] तथा उसके पास उपस्थित हुए और उसने उन्हें पहचान लिया तथा वे उससे अपरिचित रह गये।
﴿وَلَمَّا جَهَّزَهُمْ بِجَهَازِهِمْ قَالَ ائْتُونِي بِأَخٍ لَكُمْ مِنْ أَبِيكُمْ ۚ أَلَا تَرَوْنَ أَنِّي أُوفِي الْكَيْلَ وَأَنَا خَيْرُ الْمُنْزِلِينَ﴾
और जब उनका सामान तैयार कर दिया, तो कहाः अपने सौतीले भाई[1] को लाना। क्या तुम नहीं देखते कि मैं पूरा माप देता हूँ तथा उत्तम अतिथि-सत्कार करने वाला हूँ?
﴿فَإِنْ لَمْ تَأْتُونِي بِهِ فَلَا كَيْلَ لَكُمْ عِنْدِي وَلَا تَقْرَبُونِ﴾
फिर यदि, तुम उसे मेरे पास नहीं लाये, तो मेरे यहाँ तुम्हारे लिए कोई माप नहीं और न तुम मेरे समीप होगे।
﴿قَالُوا سَنُرَاوِدُ عَنْهُ أَبَاهُ وَإِنَّا لَفَاعِلُونَ﴾
वे बोलेः हम उसके पिता को इसकी प्रेरणा देंगे और हम अवश्य ऐसा करने वाले हैं।
﴿وَقَالَ لِفِتْيَانِهِ اجْعَلُوا بِضَاعَتَهُمْ فِي رِحَالِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَعْرِفُونَهَا إِذَا انْقَلَبُوا إِلَىٰ أَهْلِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ﴾
और यूसुफ़ ने अपने सेवकों को आदेश दियाः उनका मूलधन[1] उनकी बोरियों में रख दो, संभवतः वे उसे पहचान लें, जब अपने परिजनों में जायें और संभवतः वापस आयें।
﴿فَلَمَّا رَجَعُوا إِلَىٰ أَبِيهِمْ قَالُوا يَا أَبَانَا مُنِعَ مِنَّا الْكَيْلُ فَأَرْسِلْ مَعَنَا أَخَانَا نَكْتَلْ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ﴾
फिर जब अपने पिता के पास लौटकर गये, तो कहाः हमारे पिता! हम से भविष्य में (अन्न) रोक दिया गया है। अतः हमारे साथ हमारे भाई को भेजें कि हम सब अन्न (ग़ल्ला) लायें और (विशवास कीजीए कि) हम उसके रक्षक हैं।
﴿قَالَ هَلْ آمَنُكُمْ عَلَيْهِ إِلَّا كَمَا أَمِنْتُكُمْ عَلَىٰ أَخِيهِ مِنْ قَبْلُ ۖ فَاللَّهُ خَيْرٌ حَافِظًا ۖ وَهُوَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ﴾
उस (पिता) ने कहाः क्या मैं उसके लिए तुमपर वैसे ही विश्वास कर लूँ, जैसे इसके पहले उसके भाई (यूसुफ़) के बारे में विश्वास कर चुका हूँ? तो अल्लाह ही उत्तम रक्षक और वही सर्वाधिक दयावान् है।
﴿وَلَمَّا فَتَحُوا مَتَاعَهُمْ وَجَدُوا بِضَاعَتَهُمْ رُدَّتْ إِلَيْهِمْ ۖ قَالُوا يَا أَبَانَا مَا نَبْغِي ۖ هَٰذِهِ بِضَاعَتُنَا رُدَّتْ إِلَيْنَا ۖ وَنَمِيرُ أَهْلَنَا وَنَحْفَظُ أَخَانَا وَنَزْدَادُ كَيْلَ بَعِيرٍ ۖ ذَٰلِكَ كَيْلٌ يَسِيرٌ﴾
और जब उन्होंने अपना सामान खोला, तो पाया कि उनका मूलधन उन्हें फेर दिया गया है, उन्होंने कहाः हे हमारे पिता! हमें और क्या चाहिए? ये हमारा धन, हमें फेर दिया गया है? हम अपने घराने के लिए ग़ल्ले (अन्न) लायेंगे और एक ऊँट का बोझ अधिक लायेंगे[1], ये माप (अन्न) बहुत थोड़ा है।
﴿قَالَ لَنْ أُرْسِلَهُ مَعَكُمْ حَتَّىٰ تُؤْتُونِ مَوْثِقًا مِنَ اللَّهِ لَتَأْتُنَّنِي بِهِ إِلَّا أَنْ يُحَاطَ بِكُمْ ۖ فَلَمَّا آتَوْهُ مَوْثِقَهُمْ قَالَ اللَّهُ عَلَىٰ مَا نَقُولُ وَكِيلٌ﴾
उस (पिता) ने कहाः मैं कदापि उसे तुम्हारे साथ नहीं भेजूँगा, यहाँ तक कि अल्लाह के नाम पर मुझे दृढ़ वचन दो कि उसे मेरे पास अवश्य लाओगे, परन्तु ये कि तुमको घेर लिया[1] जाये और जब उन्होंने अपना दृढ़ वचन दिया, तो कहा, अल्लाह ही तुम्हारी बात (वचन) का निरीक्षक है।
﴿وَقَالَ يَا بَنِيَّ لَا تَدْخُلُوا مِنْ بَابٍ وَاحِدٍ وَادْخُلُوا مِنْ أَبْوَابٍ مُتَفَرِّقَةٍ ۖ وَمَا أُغْنِي عَنْكُمْ مِنَ اللَّهِ مِنْ شَيْءٍ ۖ إِنِ الْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَعَلَيْهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُتَوَكِّلُونَ﴾
और ( जब वे जाने लगे) तो उस (पिता) ने कहाः हे मेरे पुत्रो! तुम एक द्वार से मिस्र में प्रवेश न करना, बल्कि विभिन्न द्वारों से प्रवेश करना और मैं तुम्हें किसी चीज़ से नहीं बचा सकता, जो अल्लाह की ओर से हो और आदेश तो अल्लाह का चलता है, मैंने उसीपर भरोसा किया तथा उसीपर भरोसा करने वालों को भरोसा करना चाहिए।
﴿وَلَمَّا دَخَلُوا مِنْ حَيْثُ أَمَرَهُمْ أَبُوهُمْ مَا كَانَ يُغْنِي عَنْهُمْ مِنَ اللَّهِ مِنْ شَيْءٍ إِلَّا حَاجَةً فِي نَفْسِ يَعْقُوبَ قَضَاهَا ۚ وَإِنَّهُ لَذُو عِلْمٍ لِمَا عَلَّمْنَاهُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ﴾
और जब उन्होंने (मिस्र में) प्रवेश किया, जैसे उनके पिता ने आदेश दिया था, तो ऐसा नहीं हुआ कि वह उन्हें अल्लाह से कुछ बचा सके; परन्तु ये याक़ूब के दिल में एक विचार उत्पन्न हुआ, जिसे उसने पूरा कर लिया[1] और वास्तव में, वह उसका ज्ञानी था, जो ज्ञान हमने उसे दिया था। परन्तु अधिकांश लोग इस (की वास्तविक्ता) का ज्ञान नहीं रखते।
﴿وَلَمَّا دَخَلُوا عَلَىٰ يُوسُفَ آوَىٰ إِلَيْهِ أَخَاهُ ۖ قَالَ إِنِّي أَنَا أَخُوكَ فَلَا تَبْتَئِسْ بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾
और जब वे यूसुफ़ के पास पहुँचे, तो उसने अपने भाई को अपनी शरण में ले लिया (और उससे) कहाः मैं तेरा भाई (यूसुफ़) हूँ। अतः उससे उदासीन न हो, जो (दुरव्यवहार) वे करते आ रहे हैं।
﴿فَلَمَّا جَهَّزَهُمْ بِجَهَازِهِمْ جَعَلَ السِّقَايَةَ فِي رَحْلِ أَخِيهِ ثُمَّ أَذَّنَ مُؤَذِّنٌ أَيَّتُهَا الْعِيرُ إِنَّكُمْ لَسَارِقُونَ﴾
फिर जब उस (यूसुफ़) ने उनका सामान तैयार करा दिया, तो प्याला अपने भाई के सामान में रख दिया। फिर एक पुकारने वाले ने पुकाराः हे क़ाफ़िले वालो! तुम लोग तो चोर हो!
﴿قَالُوا وَأَقْبَلُوا عَلَيْهِمْ مَاذَا تَفْقِدُونَ﴾
उन्होंने फिरकर कहाः तुम क्या खो रहे हो?
﴿قَالُوا نَفْقِدُ صُوَاعَ الْمَلِكِ وَلِمَنْ جَاءَ بِهِ حِمْلُ بَعِيرٍ وَأَنَا بِهِ زَعِيمٌ﴾
उन (कर्मचारियों) ने कहाः हमें राजा का प्याला नहीं मिल रहा है और जो उसे ले आये, उसके लिए एक ऊँट का बोझ है और मैं उसका प्रतिभु[1] हूँ।
﴿قَالُوا تَاللَّهِ لَقَدْ عَلِمْتُمْ مَا جِئْنَا لِنُفْسِدَ فِي الْأَرْضِ وَمَا كُنَّا سَارِقِينَ﴾
उन्होंने कहाः तुम जानते हो कि हम इस देश में उपद्रव करने नहीं आये हैं और न हम चोर ही हैं।
﴿قَالُوا فَمَا جَزَاؤُهُ إِنْ كُنْتُمْ كَاذِبِينَ﴾
उन लोगों ने कहाः तो यदि तुम झूठे निकले, तो उसका दण्ड क्या होगा[1]?
﴿قَالُوا جَزَاؤُهُ مَنْ وُجِدَ فِي رَحْلِهِ فَهُوَ جَزَاؤُهُ ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي الظَّالِمِينَ﴾
उन्होंने कहाः उसका दण्ड! जिसके सामान में (प्याला) पाया जाये, वही उसका दण्ड होगा। इसी प्रकार, हम अत्याचारियों को दण्ड देते हैं[1]।
﴿فَبَدَأَ بِأَوْعِيَتِهِمْ قَبْلَ وِعَاءِ أَخِيهِ ثُمَّ اسْتَخْرَجَهَا مِنْ وِعَاءِ أَخِيهِ ۚ كَذَٰلِكَ كِدْنَا لِيُوسُفَ ۖ مَا كَانَ لِيَأْخُذَ أَخَاهُ فِي دِينِ الْمَلِكِ إِلَّا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ ۚ نَرْفَعُ دَرَجَاتٍ مَنْ نَشَاءُ ۗ وَفَوْقَ كُلِّ ذِي عِلْمٍ عَلِيمٌ﴾
फिर उसने खोज का आरंभ उस (यूसुफ़) के भाई की बोरी से पहले, उनकी बोरियों से किया। फिर उसे उस (बिनयामीन) की बोरी से निकाल लिया। इस प्रकार, हमने यूसुफ़ के लिए उपाय किया। वह राजा के नियमानुसार अपने भाई को नहीं रख सकता था, परन्तु ये कि अल्लाह चाहता। हम जिसका चाहें मान सम्मान ऊँचा कर देते हैं और प्रत्येक ज्ञानी से ऊपर एक बड़ा ज्ञानी[1] है।
﴿۞ قَالُوا إِنْ يَسْرِقْ فَقَدْ سَرَقَ أَخٌ لَهُ مِنْ قَبْلُ ۚ فَأَسَرَّهَا يُوسُفُ فِي نَفْسِهِ وَلَمْ يُبْدِهَا لَهُمْ ۚ قَالَ أَنْتُمْ شَرٌّ مَكَانًا ۖ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا تَصِفُونَ﴾
उन भाईयों ने कहाः यदि उसने चोरी की है, तो उसका एक भाई भी इससे पहले चोरी कर चुका है। तो यूसुफ़ ने ये बात अपने दिल में छुपा ली और उसे उनके लिए प्रकट नहीं किया। (यूसुफ़ ने) कहाः सबसे बुरा स्थान तुम्हारा है और अल्लाह उसे अधिक जानता है, जो तुम कह रहे हो।
﴿قَالُوا يَا أَيُّهَا الْعَزِيزُ إِنَّ لَهُ أَبًا شَيْخًا كَبِيرًا فَخُذْ أَحَدَنَا مَكَانَهُ ۖ إِنَّا نَرَاكَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ﴾
उन्होंने कहाः हे अज़ीज़[1]! उसका पिता बहुत बूढ़ा है। अतः हम में से किसी एक को उसके स्थान पर ले लो। वास्तव में, हम आपको परोपकारी देख रहे हैं।
﴿قَالَ مَعَاذَ اللَّهِ أَنْ نَأْخُذَ إِلَّا مَنْ وَجَدْنَا مَتَاعَنَا عِنْدَهُ إِنَّا إِذًا لَظَالِمُونَ﴾
उस (यूसुफ) ने कहाः अल्लाह की शरण कि हम (किसी अन्य को) पकड़ लें, उसके सिवा जिसके पास अपना सामान पाया है। (यदि ऐसा न करें) तो हम वास्तव में अत्याचारी होंगे।
﴿فَلَمَّا اسْتَيْأَسُوا مِنْهُ خَلَصُوا نَجِيًّا ۖ قَالَ كَبِيرُهُمْ أَلَمْ تَعْلَمُوا أَنَّ أَبَاكُمْ قَدْ أَخَذَ عَلَيْكُمْ مَوْثِقًا مِنَ اللَّهِ وَمِنْ قَبْلُ مَا فَرَّطْتُمْ فِي يُوسُفَ ۖ فَلَنْ أَبْرَحَ الْأَرْضَ حَتَّىٰ يَأْذَنَ لِي أَبِي أَوْ يَحْكُمَ اللَّهُ لِي ۖ وَهُوَ خَيْرُ الْحَاكِمِينَ﴾
फिर जब उससे निराश हो गये, तो एकान्त में होकर प्रामर्श करने लगे। उनके बड़े ने कहाः क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पिता ने तुमसे अल्लाह को साक्षी बनाकर दृढ़ वचन लिया था? और इससे पहले जो अपराध तुमने यूसुफ के बारे में किया है? तो मैं इस धरती (मिस्र) से नहीं जाऊँगा, जब तक मुझे मेरे पिता अनुमति न दे दें अथवा अल्लाह मेरे लिए निर्णय न कर दे और वही सबसे अच्छा निर्णय करने वाला है।
﴿ارْجِعُوا إِلَىٰ أَبِيكُمْ فَقُولُوا يَا أَبَانَا إِنَّ ابْنَكَ سَرَقَ وَمَا شَهِدْنَا إِلَّا بِمَا عَلِمْنَا وَمَا كُنَّا لِلْغَيْبِ حَافِظِينَ﴾
तुम अपने पिता की ओर लौट जाओ और कहो कि हमारे पिता! आपके पुत्र ने चोरी की है और हमने वही साक्ष्य दिया, जिसे हमने[1] जाना और हम ग़ैब के रखवाले नहीं[2] थे।
﴿وَاسْأَلِ الْقَرْيَةَ الَّتِي كُنَّا فِيهَا وَالْعِيرَ الَّتِي أَقْبَلْنَا فِيهَا ۖ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ﴾
आप उस बस्ती वालों से पूछ लें, जिसमें हम थे और उस क़ाफ़िले से जिसमें हम आये हैं और वास्तव में हम सच्चे हैं।
﴿قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنْفُسُكُمْ أَمْرًا ۖ فَصَبْرٌ جَمِيلٌ ۖ عَسَى اللَّهُ أَنْ يَأْتِيَنِي بِهِمْ جَمِيعًا ۚ إِنَّهُ هُوَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ﴾
उस (पिता) ने कहाः ऐसा नहीं है, बल्कि तुम्हारे दिलों ने एक बात बना ली है। इसलिए अब सहन करना ही उत्तम है, संभव है कि अल्लाह उनसब को मेरे पास वापस ले आए, वास्तव में, वही जानने वाला, तत्वदर्शी है।
﴿وَتَوَلَّىٰ عَنْهُمْ وَقَالَ يَا أَسَفَىٰ عَلَىٰ يُوسُفَ وَابْيَضَّتْ عَيْنَاهُ مِنَ الْحُزْنِ فَهُوَ كَظِيمٌ﴾
और उनसे मुँह फेर लिया और कहाः हाय यूसुफ़! और उसकी दोनों आँखें शोक के कारण (रोते-रोते) सफेद हो गयीं और उसका दिल शोक से भर गया।
﴿قَالُوا تَاللَّهِ تَفْتَأُ تَذْكُرُ يُوسُفَ حَتَّىٰ تَكُونَ حَرَضًا أَوْ تَكُونَ مِنَ الْهَالِكِينَ﴾
उन (पुत्रों) ने कहाः अल्लाह की शपथ! आप बराबर यूसुफ़ को याद करते रहेंगे, यहाँ तक कि (शोक से) घुल जायें या अपना विनाश कर लें।
﴿قَالَ إِنَّمَا أَشْكُو بَثِّي وَحُزْنِي إِلَى اللَّهِ وَأَعْلَمُ مِنَ اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ﴾
उसने कहाः मैं अपनी आपदा तथा शोक की शिकायत अल्लाह के सिवा किसी से नहीं करता और अल्लाह की ओर से वह बात जानता हूँ, जो तुम नहीं जानते।
﴿يَا بَنِيَّ اذْهَبُوا فَتَحَسَّسُوا مِنْ يُوسُفَ وَأَخِيهِ وَلَا تَيْأَسُوا مِنْ رَوْحِ اللَّهِ ۖ إِنَّهُ لَا يَيْأَسُ مِنْ رَوْحِ اللَّهِ إِلَّا الْقَوْمُ الْكَافِرُونَ﴾
हे मेरे पुत्र! जाओ और यूसुफ़ और उसके भाई का पता लगाओ और अल्लाह की दया से निराश न हो। वास्तव में, अल्लाह की दया से वही निराश होते हैं, जो काफ़िर हैं।
﴿فَلَمَّا دَخَلُوا عَلَيْهِ قَالُوا يَا أَيُّهَا الْعَزِيزُ مَسَّنَا وَأَهْلَنَا الضُّرُّ وَجِئْنَا بِبِضَاعَةٍ مُزْجَاةٍ فَأَوْفِ لَنَا الْكَيْلَ وَتَصَدَّقْ عَلَيْنَا ۖ إِنَّ اللَّهَ يَجْزِي الْمُتَصَدِّقِينَ﴾
फिर जब (यूसुफ़ के भाई) उसके पास (मिस्र) गये, तो कहाः हे अज़ीज़! हमपर और गमारे घराने पर आपदा (अकाल) आ पड़ी है और हम थोड़ा धन (मूल्य) लाये हैं, अतः हमें (अन्न का) पूरा माप दें और हम पर दान करें। वास्तव में, अल्लाह दानशीलों को प्रतिफल प्रदान करता है।
﴿قَالَ هَلْ عَلِمْتُمْ مَا فَعَلْتُمْ بِيُوسُفَ وَأَخِيهِ إِذْ أَنْتُمْ جَاهِلُونَ﴾
उस (यूसुफ़) ने कहाः क्या तुम जानते हो कि तुमने यूसुफ़ तथा उसके भाई के साथ क्या कुछ किया है, जब तुम अज्ञान थे?
﴿قَالُوا أَإِنَّكَ لَأَنْتَ يُوسُفُ ۖ قَالَ أَنَا يُوسُفُ وَهَٰذَا أَخِي ۖ قَدْ مَنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا ۖ إِنَّهُ مَنْ يَتَّقِ وَيَصْبِرْ فَإِنَّ اللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ﴾
उन्होंने कहाः क्या आप यूसुफ़ हैं? यूसुफ़ ने कहाः मैं यूसुफ़ हूँ और ये मेरा भाई है। अल्लाह ने हमपर उपकार किया है। वास्तव में, जो (अल्लाह से) डरता तथा सहन करता है, तो अल्लाह सदाचारियों का प्रतिफल व्यर्थ नहीं करता।
﴿قَالُوا تَاللَّهِ لَقَدْ آثَرَكَ اللَّهُ عَلَيْنَا وَإِنْ كُنَّا لَخَاطِئِينَ﴾
उन्होंने कहाः अल्लाह की शपथ! उसने आपको हमपर श्रेष्ठता प्रदान की है। वास्तव में, हम दोषी थे।
﴿قَالَ لَا تَثْرِيبَ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ ۖ يَغْفِرُ اللَّهُ لَكُمْ ۖ وَهُوَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ﴾
यूसुफ़ ने कहाः आज तुमपर कोई दोष नहीं, अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे! वही सर्वाधिक दयावान् है।
﴿اذْهَبُوا بِقَمِيصِي هَٰذَا فَأَلْقُوهُ عَلَىٰ وَجْهِ أَبِي يَأْتِ بَصِيرًا وَأْتُونِي بِأَهْلِكُمْ أَجْمَعِينَ﴾
मेरा ये कुर्ता ले जाओ और मेरे पिता के मुँह पर डाल दो, वह देखने लगेंगे। और अपने पूरे घराने को (मिस्र) ले आओ।
﴿وَلَمَّا فَصَلَتِ الْعِيرُ قَالَ أَبُوهُمْ إِنِّي لَأَجِدُ رِيحَ يُوسُفَ ۖ لَوْلَا أَنْ تُفَنِّدُونِ﴾
और जब क़ाफ़िले ने परस्थान किया, तो उनके पिता ने कहाः मुझे यूसुफ़ की सुगन्ध आ रही है, यदि तुम मुझे बहका हुआ बूढ़ा न समझो।
﴿قَالُوا تَاللَّهِ إِنَّكَ لَفِي ضَلَالِكَ الْقَدِيمِ﴾
उन लोगों[1] ने कहाः अल्लाह की शपथ! आप तो अपनी पुरानी सनक में पड़े हुए हैं।
﴿فَلَمَّا أَنْ جَاءَ الْبَشِيرُ أَلْقَاهُ عَلَىٰ وَجْهِهِ فَارْتَدَّ بَصِيرًا ۖ قَالَ أَلَمْ أَقُلْ لَكُمْ إِنِّي أَعْلَمُ مِنَ اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ﴾
फिर जब शुभ-सूचक आ गया, तो उसने वह कुर्ता उनके मुख पर डाल दिया और वे तुरन्त देखने लगे। याक़ूब ने कहाः क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि वास्तव में अल्लाह की ओर से जो कुछ मैं जानता हूँ, तुम नहीं जानते?
﴿قَالُوا يَا أَبَانَا اسْتَغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا إِنَّا كُنَّا خَاطِئِينَ﴾
सब (भाईयों) ने कहाः हे हमारे पिता! हमारे लिए हमारे पापों की क्षमा माँगिए, वास्तव में, हम ही दोषी थे।
﴿قَالَ سَوْفَ أَسْتَغْفِرُ لَكُمْ رَبِّي ۖ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ﴾
याक़ूब ने कहाः मैं तुम्हारे लिए अपने पालनहार से क्षमा की प्रार्थना करूँगा, वास्तव में, वह अति क्षमी, दयावान् है।
﴿فَلَمَّا دَخَلُوا عَلَىٰ يُوسُفَ آوَىٰ إِلَيْهِ أَبَوَيْهِ وَقَالَ ادْخُلُوا مِصْرَ إِنْ شَاءَ اللَّهُ آمِنِينَ﴾
फिर जब वे यूसुफ़ के पास पहुँचे, तो उसने अपनी माता-पिता को अपनी शरण में ले लिया और कहाः नगर (मिस्र) में प्रवेश कर जाओ, यदि अल्लाह ने चाहा, तो शान्ति से रहोगे।
﴿وَرَفَعَ أَبَوَيْهِ عَلَى الْعَرْشِ وَخَرُّوا لَهُ سُجَّدًا ۖ وَقَالَ يَا أَبَتِ هَٰذَا تَأْوِيلُ رُؤْيَايَ مِنْ قَبْلُ قَدْ جَعَلَهَا رَبِّي حَقًّا ۖ وَقَدْ أَحْسَنَ بِي إِذْ أَخْرَجَنِي مِنَ السِّجْنِ وَجَاءَ بِكُمْ مِنَ الْبَدْوِ مِنْ بَعْدِ أَنْ نَزَغَ الشَّيْطَانُ بَيْنِي وَبَيْنَ إِخْوَتِي ۚ إِنَّ رَبِّي لَطِيفٌ لِمَا يَشَاءُ ۚ إِنَّهُ هُوَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ﴾
तथा अपने माता-पिता को उठाकर सिंहासन पर बिठा लिया और सब उसके समक्ष सज्दे में गिर गये और यूसुफ़ ने कहाः हे मेरे पिता! यही मेरे स्वप्न का अर्थ है, जो मैंने पहले देखा था। मेरे पालनहार ने उसे सच कर दिया है तथा मेरे साथ उपकार किया, जब उसने मुझे कारावास से निकाला और आप लोगों को गाँव से मेरे पास (नगर में) ले आया, इसके पश्चात् कि शैतान ने मेरे तथा मेरे भाईयों के बीच विरोध डाल दिया। वास्तव में, मेरा पालनहार जिसके लिए चाहे, उसके लिए उत्तम उपाय करने वाहा है। निश्चय वही अति ज्ञानी, तत्वज्ञ है।
﴿۞ رَبِّ قَدْ آتَيْتَنِي مِنَ الْمُلْكِ وَعَلَّمْتَنِي مِنْ تَأْوِيلِ الْأَحَادِيثِ ۚ فَاطِرَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ أَنْتَ وَلِيِّي فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۖ تَوَفَّنِي مُسْلِمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ﴾
हे मेरे पालनहार! तूने मुझे राज प्रदान किया तथा मुझे स्वप्नों का अर्थ सिखाया। हे आकाशों तथा धरती के उत्पत्तिकार! तू लोक तथा परलोक में मेरा रक्षक है। तू मेरा अन्त इस्लाम पर कर और मुझे सदाचारियों में मिला दे।
﴿ذَٰلِكَ مِنْ أَنْبَاءِ الْغَيْبِ نُوحِيهِ إِلَيْكَ ۖ وَمَا كُنْتَ لَدَيْهِمْ إِذْ أَجْمَعُوا أَمْرَهُمْ وَهُمْ يَمْكُرُونَ﴾
(हे नबी!) ये (कथा) परोक्ष के समाचारों में से है, जिसकी वह़्यी हम आपकी ओर कर रहे हैं। और आप उन (भाईयों) के पास नहीं थे, जब वे आपस की सहमति से षड्यंत्र रचते रहे।
﴿وَمَا أَكْثَرُ النَّاسِ وَلَوْ حَرَصْتَ بِمُؤْمِنِينَ﴾
और अधिकांश लोग आप कितनी ही लालसा करें, ईमान लाने वाले नहीं हैं।
﴿وَمَا تَسْأَلُهُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِلْعَالَمِينَ﴾
और आप इस (धर्मप्रचार) पर उनसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगते। ये (क़ुर्आन) तो विश्ववासियों के लिए (केवल) एक शिक्षा है।
﴿وَكَأَيِّنْ مِنْ آيَةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يَمُرُّونَ عَلَيْهَا وَهُمْ عَنْهَا مُعْرِضُونَ﴾
तथा आकाशों और धरती में बहुत सी निशानियाँ (लक्षण[1]) हैं, जिनपर से लोग गुज़रते रहते हैं और उनपर ध्यान नहीं देते[2]।
﴿وَمَا يُؤْمِنُ أَكْثَرُهُمْ بِاللَّهِ إِلَّا وَهُمْ مُشْرِكُونَ﴾
और उनमें से अधिक्तर अल्लाह को मानते तो हैं, परन्तु (साथ ही) मुश्रिक (मिश्रणवादी)[1] भी हैं।
﴿أَفَأَمِنُوا أَنْ تَأْتِيَهُمْ غَاشِيَةٌ مِنْ عَذَابِ اللَّهِ أَوْ تَأْتِيَهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ﴾
तो क्या वे निर्भय हो गये हैं कि उनपर अल्लाह की यातना छा जाये अथवा उनपर प्रलय अकस्मात आ जाये और वे अचेत रह जायेँ?
﴿قُلْ هَٰذِهِ سَبِيلِي أَدْعُو إِلَى اللَّهِ ۚ عَلَىٰ بَصِيرَةٍ أَنَا وَمَنِ اتَّبَعَنِي ۖ وَسُبْحَانَ اللَّهِ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِكِينَ﴾
(हे नबी!) आप कह दें: यही मेरी डगर है, मैं अल्लाह की ओर बुला रहा हूँ। मैं पूरे विश्वास और सत्य पर हूँ और जिसने मेरा अनुसरण किया (वे भी) तथा अल्लाह पवित्र है और मैं मुश्रिकों (मिश्रणवादियों) में से नहीं हूँ।
﴿وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ إِلَّا رِجَالًا نُوحِي إِلَيْهِمْ مِنْ أَهْلِ الْقُرَىٰ ۗ أَفَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۗ وَلَدَارُ الْآخِرَةِ خَيْرٌ لِلَّذِينَ اتَّقَوْا ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ﴾
और हमने आपसे पहले मानव[1] पुरुषों ही को नबी बनाकर भेजा, जिनकी ओर प्रकाशना भेजते रहे, नगर वासियों में से, क्या वे धरती में चले फिरे नहीं, ताकि देखते कि उनका परिणाम क्या हुआ, जो इनसे पहले थे? और निश्चय आख़िरत (परलोक) का घर (स्वर्ग) उनके लिए उत्तम है, जो अल्लाह से डरे, तो क्या तुम समझते नहीं हो?
﴿حَتَّىٰ إِذَا اسْتَيْأَسَ الرُّسُلُ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُوا جَاءَهُمْ نَصْرُنَا فَنُجِّيَ مَنْ نَشَاءُ ۖ وَلَا يُرَدُّ بَأْسُنَا عَنِ الْقَوْمِ الْمُجْرِمِينَ﴾
(इससे पहले भी रसूलों के साथ यही हुआ।) यहाँ तक कि जब रसूल निराश हो गये और लोगों को विश्वास हो गया कि उनसे झूठ बोला गया है, तो उनके लिए हमारी सहायता आ गई, फिर हम जिसे चाहते हैं, बचा लेते हैं और हमारी यातना अपराधियों से फेरी नहीं जाती।
﴿لَقَدْ كَانَ فِي قَصَصِهِمْ عِبْرَةٌ لِأُولِي الْأَلْبَابِ ۗ مَا كَانَ حَدِيثًا يُفْتَرَىٰ وَلَٰكِنْ تَصْدِيقَ الَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَتَفْصِيلَ كُلِّ شَيْءٍ وَهُدًى وَرَحْمَةً لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ﴾
इन कथाओं में, बुध्दिमानों के लिए बड़ी शिक्षा है, ये (क़ुर्आन) ऐसी बातों का संग्रह नहीं है, जिसे स्वयं बना लिया जाता हो, परन्तु इससे पहले की पुस्तकों की सिध्दि और प्रत्येक वस्तु का विवरण (ब्योरा) है तथा मार्गदर्शन और दया है, उन लोगों के लिए जो ईमान (विश्वास) रखते हों।
الترجمات والتفاسير لهذه السورة:
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