الترجمة الهندية
ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ تَنْزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ﴾
इस पुस्तक का अवतरित होना अल्लाह अति प्रभावशाली, तत्वज्ञ की ओर से है।
﴿إِنَّا أَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ فَاعْبُدِ اللَّهَ مُخْلِصًا لَهُ الدِّينَ﴾
हमने आपकी ओर ये पुस्तक सत्य के साथ अवतरित की है। अतः, इबादत (वंदना) करो अल्लाह की शुध्द करते हुए उसके लिए धर्म को।
﴿أَلَا لِلَّهِ الدِّينُ الْخَالِصُ ۚ وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ أَوْلِيَاءَ مَا نَعْبُدُهُمْ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَا إِلَى اللَّهِ زُلْفَىٰ إِنَّ اللَّهَ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ فِي مَا هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ كَاذِبٌ كَفَّارٌ﴾
सुन लो! शुध्द धर्म अल्लाह ही के लिए (योग्य) है तथा जिन्होंने बना रखा है अल्लाह के सिवा संरक्षक, वे कहते हैं कि हम तो उनकी वंदना इसलिए करते हैं कि वह समीप कर देंगें हमें अल्लाह[1] से। वास्तव में, अल्लाह ही निर्णय करेगा उनके बीच जिसमें वे विभेद कर रहे हैं। वास्तव में, अल्लाह उसे सुपथ नहीं दर्शाता जो बड़ा मिथ्यावादी, कृतघ्न हो।
﴿لَوْ أَرَادَ اللَّهُ أَنْ يَتَّخِذَ وَلَدًا لَاصْطَفَىٰ مِمَّا يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ سُبْحَانَهُ ۖ هُوَ اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ﴾
यदि अल्लाह चाहता कि अपने लिए संतान बनाये, तो चुन लेता उसमें से, जिसे पैदा करता है, जिसे चाहता। वह पवित्र है! वही अल्लाह अकेला सबपर प्रभावशाली है।
﴿خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ ۖ يُكَوِّرُ اللَّيْلَ عَلَى النَّهَارِ وَيُكَوِّرُ النَّهَارَ عَلَى اللَّيْلِ ۖ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ ۖ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُسَمًّى ۗ أَلَا هُوَ الْعَزِيزُ الْغَفَّارُ﴾
उसने पैदा किया है आकाशों तथा धरती को सत्य के आधार पर। वह लपेट देता है रात्रि को दिन पर तथा दिन को रात्रि पर तथा वशवर्ती किया सूर्य और चन्द्रमा को। प्रत्येक चल रहा है, अपनी निर्धारित अवधि के लिए। सावधान! वही अत्यंत प्रभावशाली, क्षमी है।
﴿خَلَقَكُمْ مِنْ نَفْسٍ وَاحِدَةٍ ثُمَّ جَعَلَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَأَنْزَلَ لَكُمْ مِنَ الْأَنْعَامِ ثَمَانِيَةَ أَزْوَاجٍ ۚ يَخْلُقُكُمْ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ خَلْقًا مِنْ بَعْدِ خَلْقٍ فِي ظُلُمَاتٍ ثَلَاثٍ ۚ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۖ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَأَنَّىٰ تُصْرَفُونَ﴾
उसने तुम्हें पैदा किया एक प्राण से, फिर बनाया उसीसे उसका जोड़ा तथा अवतरित किये तुम्हारे लिए पशुओं में से आठ जोड़े। वह पैदा करता है तुम्हें तुम्हारी माताओं के गर्भाषयों में एक रूप में, एक रूप के पश्चात्, तीन अंधेरों में, यही अल्लाह है तुम्हारा पालनहार, उसी का राज्य है। कोई ( सच्चा) वंदनीय नहीं, उसके सिवा। तो तुम कहाँ फिराये जा रहे हो?
﴿إِنْ تَكْفُرُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنْكُمْ ۖ وَلَا يَرْضَىٰ لِعِبَادِهِ الْكُفْرَ ۖ وَإِنْ تَشْكُرُوا يَرْضَهُ لَكُمْ ۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۗ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمْ مَرْجِعُكُمْ فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ ۚ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ﴾
यदि तुम कृतघ्न बनो, तो अल्लाह निस्पृह है तुमसे और वह प्रसन्न नहीं होता अपने भक्तों की कृतघ्नता से और यदि कृतज्ञता करो, तो वह प्रसन्न हो जायेगा तुमसे और नहीं बोझ उठायेगा कोई उठाने वाला दूसरों का बोझ। फिर तुम्हारे पालनहार ही की ओर तुम्हारा फिरना है। तो वह तुम्हें सूचित कर देगा तुम्हारे कर्मों से। वास्तव में, वह भली-भाँति जानने वाला है दिलों के भेदों को।
﴿۞ وَإِذَا مَسَّ الْإِنْسَانَ ضُرٌّ دَعَا رَبَّهُ مُنِيبًا إِلَيْهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُ نِعْمَةً مِنْهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدْعُو إِلَيْهِ مِنْ قَبْلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَنْدَادًا لِيُضِلَّ عَنْ سَبِيلِهِ ۚ قُلْ تَمَتَّعْ بِكُفْرِكَ قَلِيلًا ۖ إِنَّكَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ﴾
तथा जब पहुँचता है मनुष्य को कोई दुःख तो पुकारता है अपने पालनहार को, ध्यानमग्न होकर उसकी ओर। फिर जब हम उसे प्रदान करते हैं कोई सुख अपनी ओर से, तो भूल जाता है उसे, जिसके लिए वह पुकार रहा था इससे पूर्व तथा बना लेता है अल्लाह का साझी, ताकि कुपथ करे उसकी डगर से। आप कह कदें कि आनन्द ले ले अपने कुफ़्र का, थोड़ा सा। वास्तव में, तू नारकियों में है।
﴿أَمَّنْ هُوَ قَانِتٌ آنَاءَ اللَّيْلِ سَاجِدًا وَقَائِمًا يَحْذَرُ الْآخِرَةَ وَيَرْجُو رَحْمَةَ رَبِّهِ ۗ قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الَّذِينَ يَعْلَمُونَ وَالَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ ۗ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُولُو الْأَلْبَابِ﴾
तो क्या जो आज्ञाकारी रहा हो रात्रि के क्षणों में सज्दा करते हुए तथा खड़ा रहकर, (और) डर रहा हो परलोक से तथा आशा रखता हो अल्लाह की दया की, आप कहें कि क्या समान हो जायेंगे जो ज्ञान रखते हों तथा जो ज्ञान नहीं रखते? वास्तव में, शिक्षा ग्रहण करते हैं मतिमान लोग ही।
﴿قُلْ يَا عِبَادِ الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا رَبَّكُمْ ۚ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا فِي هَٰذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ ۗ وَأَرْضُ اللَّهِ وَاسِعَةٌ ۗ إِنَّمَا يُوَفَّى الصَّابِرُونَ أَجْرَهُمْ بِغَيْرِ حِسَابٍ﴾
आप कह दें उन भक्तों से, जो ईमान लाये तथा डरे अपने पालनहार से कि उन्हीं के लिए जिन्होंने सदाचार किये इस संसार में, बड़ी भलाई है तथा अल्लाह की धरती विस्तृत है और धैर्यवान ही अपना पूरा प्रतिफल अगणित दिये जायेंगे।
﴿قُلْ إِنِّي أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ مُخْلِصًا لَهُ الدِّينَ﴾
आप कह दें कि मुझे आदेश दिया गया है कि इबादत (वंदना) करूँ अल्लाह की, शुध्द करके उसके लिए धर्म को।
﴿وَأُمِرْتُ لِأَنْ أَكُونَ أَوَّلَ الْمُسْلِمِينَ﴾
तथा मुझे आदेश दिया गया है कि प्रथम आज्ञाकारी हो जाऊँ।
﴿قُلْ إِنِّي أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّي عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ﴾
आप कह दें: मैं डरता हूँ, यदि मैं अवैज्ञा करूँ अपने पालनहार की, एक बड़े दिन की यातना से।
﴿قُلِ اللَّهَ أَعْبُدُ مُخْلِصًا لَهُ دِينِي﴾
आप कह दें: अल्लाह ही की इबादत (वंदना) मैं कर रहा हूँ, शुध्द करके उसके लिए अपने धर्म को।
﴿فَاعْبُدُوا مَا شِئْتُمْ مِنْ دُونِهِ ۗ قُلْ إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنْفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ أَلَا ذَٰلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ﴾
अतः तुम इबादत (वंदना) करो जिसकी चाहो, उसके सिवा। आप कह दें: वास्तव में, क्षतिग्रस्त वही हैं, जिन्होंने क्षतिग्रस्त कर लिया स्वयं को तथा अपने परिवार को प्रलय के दिन। सावधान! यही खुली क्षति है।
﴿لَهُمْ مِنْ فَوْقِهِمْ ظُلَلٌ مِنَ النَّارِ وَمِنْ تَحْتِهِمْ ظُلَلٌ ۚ ذَٰلِكَ يُخَوِّفُ اللَّهُ بِهِ عِبَادَهُ ۚ يَا عِبَادِ فَاتَّقُونِ﴾
उन्हीं के लिए छत्र होंगे अग्नि के, उनके ऊपर से तथा उनके नीचे से छत्र होंगे। यही है, डरा रहा है अल्लाह जिससे, अपने भक्तों को। हे मेरे भक्तो! मुझी से डरो।
﴿وَالَّذِينَ اجْتَنَبُوا الطَّاغُوتَ أَنْ يَعْبُدُوهَا وَأَنَابُوا إِلَى اللَّهِ لَهُمُ الْبُشْرَىٰ ۚ فَبَشِّرْ عِبَادِ﴾
जो बचे रहे ताग़ूत (असुर)[1] की पूजा से तथा ध्यानमग्न हो गये अल्लाह की ओर, तो उन्हीं के लिए शुभ सूचना है। अतः, आप शुभ सूचना सुना दें मेरे भक्तों को।
﴿الَّذِينَ يَسْتَمِعُونَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحْسَنَهُ ۚ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ هَدَاهُمُ اللَّهُ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمْ أُولُو الْأَلْبَابِ﴾
जो ध्यान से सुनते हैं इस बात को, फिर अनुसरण करते हैं इस सर्वोत्तम बात का, तो वही हैं, जिन्हें सुपथ दर्शा दिया है अल्लाह ने तथा वही मतिमान हैं।
﴿أَفَمَنْ حَقَّ عَلَيْهِ كَلِمَةُ الْعَذَابِ أَفَأَنْتَ تُنْقِذُ مَنْ فِي النَّارِ﴾
तो क्या जिसपर यातना की बात सिध्द हो गयी, क्या आप निकाल सकेंगे उसे, जो नरक में हैं?
﴿لَٰكِنِ الَّذِينَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ لَهُمْ غُرَفٌ مِنْ فَوْقِهَا غُرَفٌ مَبْنِيَّةٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ وَعْدَ اللَّهِ ۖ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ الْمِيعَادَ﴾
किन्तु, जो अपने पालनहार से डरे, उन्हीं के लिए उच्च भवन हैं। जिनके ऊपर निर्मित भवन हैं। प्रवाहित हैं जिनमें नहरें, ये अल्लाह का वचन है और अल्लाह वचन भंग नहीं करता।
﴿أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَسَلَكَهُ يَنَابِيعَ فِي الْأَرْضِ ثُمَّ يُخْرِجُ بِهِ زَرْعًا مُخْتَلِفًا أَلْوَانُهُ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَاهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَجْعَلُهُ حُطَامًا ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكْرَىٰ لِأُولِي الْأَلْبَابِ﴾
क्या तुमने नहीं देखा[1] कि अल्लाह ने उतारा आकाश से जल? फिर प्रवाहित कर दिये उसके स्रोत धरती में। फिर निकालता है उससे खेतियाँ विभिन्न रंगों की। फिर सूख जाती हैं, तो तुम देखते हो उन्हें पीली, फिर उसे चूर-चूर कर देता है। निश्चय इसमें बड़ी शिक्षा है मतिमानों के लिए।
﴿أَفَمَنْ شَرَحَ اللَّهُ صَدْرَهُ لِلْإِسْلَامِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورٍ مِنْ رَبِّهِ ۚ فَوَيْلٌ لِلْقَاسِيَةِ قُلُوبُهُمْ مِنْ ذِكْرِ اللَّهِ ۚ أُولَٰئِكَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ﴾
तो क्या खोल दिया हो अल्लाह ने जिसका सीना इस्लाम के लिए, तो वह एक प्रकाश पर हो अपने पालनहार की ओर से। तो विनाश है जिनके दिल कड़े हो गये अल्लाह के स्मरण से, वही खुले कुपथ में हैं।
﴿اللَّهُ نَزَّلَ أَحْسَنَ الْحَدِيثِ كِتَابًا مُتَشَابِهًا مَثَانِيَ تَقْشَعِرُّ مِنْهُ جُلُودُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمْ وَقُلُوبُهُمْ إِلَىٰ ذِكْرِ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ هُدَى اللَّهِ يَهْدِي بِهِ مَنْ يَشَاءُ ۚ وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ﴾
अल्लाह ही है, जिसने सर्वोत्तम ह़दीस (क़ुर्आन) को अवतरित किया है। ऐसी पुस्तक, जिसकी आयतें मिलती-जुलती बार-बार दुहराई जाने वाली हैं। जिसे (सुनकर) खड़े हो जाते हैं उनके रूँगटे, जो डरते हैं अपने पालनहार से। फिर कोमल हो जाते हैं उनके अंग तथा दिल, अल्लाह के स्मरण की ओर। यही है अल्लाह का मार्गदर्शन, जिसके द्वारा वह संमार्ग पर लगा देता है, जिसे चाहता है और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसका कोई पथदर्शक नहीं है।
﴿أَفَمَنْ يَتَّقِي بِوَجْهِهِ سُوءَ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ وَقِيلَ لِلظَّالِمِينَ ذُوقُوا مَا كُنْتُمْ تَكْسِبُونَ﴾
तो क्या जो अपनी रक्षा करेगा अपने मुख[1] से, बुरी यातना से, प्रलय के दिन? तथा कहा जायेगा अत्याचारियों सेः चखो, जो तुम कर रहे थे।
﴿كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَأَتَاهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ﴾
झुठला दिया उन्होंने, जो इनसे पूर्व थे। तो आ गयी यातना उनके पास, जहाँ से उन्हें अनुमान (भी) न था।
﴿فَأَذَاقَهُمُ اللَّهُ الْخِزْيَ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ﴾
तो चखा दिया अल्लाह ने उन्हें अपमान, सांसारिक जीवन में और आख़िरत (परलोक) की यातना निश्चय अत्यधिक बड़ी है। क्या ही अच्छा होता, यदि वे जानते।
﴿وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا الْقُرْآنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ﴾
और हमने मनुष्य के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण दिये हैं, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।
﴿قُرْآنًا عَرَبِيًّا غَيْرَ ذِي عِوَجٍ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ﴾
अरबी भाषा में क़ुर्आन, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है, ताकि वे अल्लाह से डरें।
﴿ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا رَجُلًا فِيهِ شُرَكَاءُ مُتَشَاكِسُونَ وَرَجُلًا سَلَمًا لِرَجُلٍ هَلْ يَسْتَوِيَانِ مَثَلًا ۚ الْحَمْدُ لِلَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ﴾
अल्लाह ने एक उदाहरण दिया है एक व्यक्ति का, जिसमें बहुत-से परस्पर विरोधी साझी हैं तथा एक व्यक्ति पूरा एक व्यक्ति का (दास) है। तो क्या दशा में दोनों समान हो जायेंगे?[1] सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, बल्कि उनमें से अधिक्तर नहीं जानते।
﴿إِنَّكَ مَيِّتٌ وَإِنَّهُمْ مَيِّتُونَ﴾
(हे नबी!) निश्चय आपको मरना है तथा उन्हें भी मरना है।
﴿ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عِنْدَ رَبِّكُمْ تَخْتَصِمُونَ﴾
फिर तुम सभी[1] प्रलय के दिन अल्लाह के समक्ष झगड़ोगे।
﴿۞ فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ كَذَبَ عَلَى اللَّهِ وَكَذَّبَ بِالصِّدْقِ إِذْ جَاءَهُ ۚ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِلْكَافِرِينَ﴾
तो उससे बड़ा अत्याचारी कौन हो सकता है जो अल्लाह पर झूठ बोले तथा सच को झुठलाये, जब उसके पास आ गया? तो क्या नरक में नहीं है, ऐसे काफ़िरों का स्थान?
﴿وَالَّذِي جَاءَ بِالصِّدْقِ وَصَدَّقَ بِهِ ۙ أُولَٰئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ﴾
तथा जो सत्य लाये[1] और जिसने उसे सच माना, तो वही (यातना से) सुरक्षित रहने वाले हैं।
﴿لَهُمْ مَا يَشَاءُونَ عِنْدَ رَبِّهِمْ ۚ ذَٰلِكَ جَزَاءُ الْمُحْسِنِينَ﴾
उन्हीं के लिए है, जो वह चाहेंगे उनके पालनहार के यहाँ और यही सदाचारियों का प्रतिफल है।
﴿لِيُكَفِّرَ اللَّهُ عَنْهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي عَمِلُوا وَيَجْزِيَهُمْ أَجْرَهُمْ بِأَحْسَنِ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾
ताकि अल्लाह क्षमा कर दे, जो कुकर्म उन्होंने किये हैं तथा उन्हें प्रदान करे उनका प्रतिफल उनके उत्तम कर्मों के बदले, जो वे कर रहे थे।
﴿أَلَيْسَ اللَّهُ بِكَافٍ عَبْدَهُ ۖ وَيُخَوِّفُونَكَ بِالَّذِينَ مِنْ دُونِهِ ۚ وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ﴾
क्या अल्लाह प्रयाप्त नहीं है अपने भक्त के लिए? तथा वह आपको डराते हैं उनसे, जो उसके सिवा हैं तथा जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो नहीं है उसे कोई सुपथ दर्शाने वाला।
﴿وَمَنْ يَهْدِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ مُضِلٍّ ۗ أَلَيْسَ اللَّهُ بِعَزِيزٍ ذِي انْتِقَامٍ﴾
और जिसे अल्लाह सुपथ दर्शा दे, तो नहीं है उसे कोई कुपथ करने वाला। क्या नहीं है अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला?
﴿وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ مَنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۚ قُلْ أَفَرَأَيْتُمْ مَا تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ إِنْ أَرَادَنِيَ اللَّهُ بِضُرٍّ هَلْ هُنَّ كَاشِفَاتُ ضُرِّهِ أَوْ أَرَادَنِي بِرَحْمَةٍ هَلْ هُنَّ مُمْسِكَاتُ رَحْمَتِهِ ۚ قُلْ حَسْبِيَ اللَّهُ ۖ عَلَيْهِ يَتَوَكَّلُ الْمُتَوَكِّلُونَ﴾
और यदि आप, उनसे प्रश्न करें कि किसने पैदा किया है आकाशों तथा धरती को? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। आप कहिये कि तुम बताओ, जिसे तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, यदि अल्लाह मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो क्या ये उसकी हानि दूर कर सकता हैं? अथवा मेरे साथ दया करना चाहे, तो क्या ये रोक सकते हैं उसकी दया को? आप कह दें कि मुझे पर्याप्त है अल्लाह और उसीपर भरोसा करते हैं, भरोसा करने वाले।
﴿قُلْ يَا قَوْمِ اعْمَلُوا عَلَىٰ مَكَانَتِكُمْ إِنِّي عَامِلٌ ۖ فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ﴾
आप कह दें कि हे मेरी जाति के लोगो! तुम काम करो अपने स्थान पर, मैंभी काम कर रहा हूँ। तो शीघ्र ही तुम्हें ज्ञान हो जायेगा।
﴿مَنْ يَأْتِيهِ عَذَابٌ يُخْزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيْهِ عَذَابٌ مُقِيمٌ﴾
कि किसके पास आती है ऐसी यातना, जो उसे अपमानित कर दे तथा उतरती है किसके ऊपर स्थायी यातना?
﴿إِنَّا أَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ لِلنَّاسِ بِالْحَقِّ ۖ فَمَنِ اهْتَدَىٰ فَلِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا ۖ وَمَا أَنْتَ عَلَيْهِمْ بِوَكِيلٍ﴾
वास्तव में, हमने ही अवतरित की है आपपर ये पुस्तक, लोगों के लिए सत्य के साथ। तो जिसने मार्गदर्शन प्राप्त कर लिया, तो उसके अपने (लाभ के) लिए है तथा जो कुपथ हो गया, तो वह कुपथ होता है अपने ऊपर तथा आप उनपर संरक्षक नहीं हैं।
﴿اللَّهُ يَتَوَفَّى الْأَنْفُسَ حِينَ مَوْتِهَا وَالَّتِي لَمْ تَمُتْ فِي مَنَامِهَا ۖ فَيُمْسِكُ الَّتِي قَضَىٰ عَلَيْهَا الْمَوْتَ وَيُرْسِلُ الْأُخْرَىٰ إِلَىٰ أَجَلٍ مُسَمًّى ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ﴾
अल्लाह ही खींचता है प्राणों को, उनके मरण के समय तथा जिसके मरण का समय नहीं आया, उसकी निद्रा में। फिर रोक लेता है जिसपर निर्णय कर दिया हो मरण का तथा भेज देता है अन्य को, एक निर्धारित समय तक के लिए। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ हैं उनके लिए, जो मनन-चिन्तन[1] करते हों।
﴿أَمِ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ شُفَعَاءَ ۚ قُلْ أَوَلَوْ كَانُوا لَا يَمْلِكُونَ شَيْئًا وَلَا يَعْقِلُونَ﴾
क्या उन्होंने बना लिए हैं अल्लाह के अतिरिक्त बहुत-से अभिस्तावक (सिफ़ारिशी)? आप कह दें: क्या (ये सिफ़ारिश करेंगे) यदि वे अधिकार न रखते हों किसी चीज़ का और न ही समझ सकते हों?
﴿قُلْ لِلَّهِ الشَّفَاعَةُ جَمِيعًا ۖ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ﴾
आप कह दें कि अनुशंसा (सिफ़ारिश) तो सब अल्लाह के अधिकार में है। उसी के लिए है आकाशों तथा धरती का राज्य। फिर उसी की ओर तुम फिराये जाओगे।
﴿وَإِذَا ذُكِرَ اللَّهُ وَحْدَهُ اشْمَأَزَّتْ قُلُوبُ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ ۖ وَإِذَا ذُكِرَ الَّذِينَ مِنْ دُونِهِ إِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُونَ﴾
तथा जब वर्णन किया जाता है अकेले अल्लाह का, तो संकीर्ण होने लगते हैं उनके दिल, जो ईमान नहीं रखते आख़िरत[1] पर तथा जब वर्णन किया जाता है उनका, जो उसके सिवा हैं, तो वे सहसा प्रसन्न हो जाते हैं।
﴿قُلِ اللَّهُمَّ فَاطِرَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ أَنْتَ تَحْكُمُ بَيْنَ عِبَادِكَ فِي مَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ﴾
(हे नबी!) आप कहें: हे अल्लाह आकाशों तथा धरती के पैदा करने वाले, परोक्ष तथा प्रत्यक्ष के ज्ञानी! तू ही निर्णय करेगा अपने भक्तों के बीच, जिस बात में वे झगड़ रहे थे।
﴿وَلَوْ أَنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا مَا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لَافْتَدَوْا بِهِ مِنْ سُوءِ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ وَبَدَا لَهُمْ مِنَ اللَّهِ مَا لَمْ يَكُونُوا يَحْتَسِبُونَ﴾
और यदि उनका, जिन्होंने अत्याचार किया है, जो कुछ धरती में है, सब हो जाये तथा उसके समान उसके साथ और आ जाये, तो वे उसे दण्ड में दे देंगे[1] घोर यातना के बदले, प्रलय के दिन तथा खुल जायेगी उनके लिए अल्लाह की ओर, से वो बात, जिसे वे समझ नहीं रहे थे।
﴿وَبَدَا لَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَحَاقَ بِهِمْ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ﴾
तथा खुल जायेंगी उनके लिए उनके करतूतों की बुराईयाँ और उन्हें घेर लेगा, जिसका वे उपहास कर रहे थे।
﴿فَإِذَا مَسَّ الْإِنْسَانَ ضُرٌّ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلْنَاهُ نِعْمَةً مِنَّا قَالَ إِنَّمَا أُوتِيتُهُ عَلَىٰ عِلْمٍ ۚ بَلْ هِيَ فِتْنَةٌ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ﴾
और जब पहुँचता है मनुष्यों को कोई दुःख, तो हमें पुकारता है। फिर जब हम प्रदान करते हैं कोई सुख अपनी ओर से, तो कहता हैः ये तो मुझे प्रदान किया गया है ज्ञान के कारण। बल्कि, ये एक परीक्षा है। किन्तु, लोगों में से अधिक्तर (इसे) नहीं जानते।
﴿قَدْ قَالَهَا الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَمَا أَغْنَىٰ عَنْهُمْ مَا كَانُوا يَكْسِبُونَ﴾
यही बात, उन लोगों ने भी कही थी, जो इनसे पूर्व थे। तो नहीं काम आया उनके, जो कुछ वे कमा रहे थे।
﴿فَأَصَابَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا ۚ وَالَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْ هَٰؤُلَاءِ سَيُصِيبُهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَمَا هُمْ بِمُعْجِزِينَ﴾
फिर आ पड़े उनपर उनके सब कुकर्म और जो अत्याचार किये हैं इनमें से, आ पड़ेंगे उनपर (भी) उनके कुकर्म तथा वे (हमें) विवश करने वाले नहीं हैं।
﴿أَوَلَمْ يَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ﴾
क्या उन्हें ज्ञान नहीं कि अल्लाह फैलाता है जीविका, जिसके लिए चाहता है तथा नापकर देता है (जिसके लिए चाहता है)? निश्चय इसमें कई निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान रखते हैं।
﴿۞ قُلْ يَا عِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَىٰ أَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا ۚ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ﴾
आप कह दें मेरे उन भक्तों से, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किये हैं कि तुम निराश[1] न हो अल्लाह की दया से। वास्तव में, अल्लाह क्षमा कर देता है सब पापों को। निश्चय वह अति क्षमी, दयावान् है।
﴿وَأَنِيبُوا إِلَىٰ رَبِّكُمْ وَأَسْلِمُوا لَهُ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنْصَرُونَ﴾
तथा झुक पड़ो अपने पालनहार की ओर और आज्ञाकारी हो जाओ उसके, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ जाये, फिर तुम्हारी सहायता न की जाये।
﴿وَاتَّبِعُوا أَحْسَنَ مَا أُنْزِلَ إِلَيْكُمْ مِنْ رَبِّكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ بَغْتَةً وَأَنْتُمْ لَا تَشْعُرُونَ﴾
तथा पालन करो उस सर्वोत्तम (क़र्आन) का, जो अवतरित किया गया है तुम्हारी ओर तुम्हारे पालनहार की ओर से, इससे पूर्व कि आ पड़े तुमपर यातना और तुम्हें ज्ञान न हो।
﴿أَنْ تَقُولَ نَفْسٌ يَا حَسْرَتَا عَلَىٰ مَا فَرَّطْتُ فِي جَنْبِ اللَّهِ وَإِنْ كُنْتُ لَمِنَ السَّاخِرِينَ﴾
(ऐसा न हो कि) कोई व्यक्ति कहे कि हाय संताप! इस बात पर कि मैं आलस्य किया अल्लाह के पक्ष में तथा मैं उपहास करने वालों में रह गया।
﴿أَوْ تَقُولَ لَوْ أَنَّ اللَّهَ هَدَانِي لَكُنْتُ مِنَ الْمُتَّقِينَ﴾
अथवा कहे कि यदि अल्लाह मुझे सुपथ दिखाता, तो मैं डरने वालों में से हो जाता।
﴿أَوْ تَقُولَ حِينَ تَرَى الْعَذَابَ لَوْ أَنَّ لِي كَرَّةً فَأَكُونَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ﴾
अथवा कहे जब देख ले यातना को कि यदि मुझे (संसार में) फिरकर जाने का अवसर हो जाये, तो मैं अवश्य सदाचारियों में से हो जाऊँगा।
﴿بَلَىٰ قَدْ جَاءَتْكَ آيَاتِي فَكَذَّبْتَ بِهَا وَاسْتَكْبَرْتَ وَكُنْتَ مِنَ الْكَافِرِينَ﴾
हाँ, आईं तुम्हारे पास मेरी निशानियाँ, तो तुमने उन्हें झुठला दिया और अभिमान किया तथा तुम थे ही काफ़िरों में से।
﴿وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ تَرَى الَّذِينَ كَذَبُوا عَلَى اللَّهِ وُجُوهُهُمْ مُسْوَدَّةٌ ۚ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِلْمُتَكَبِّرِينَ﴾
और प्रलय के दिन आप उन्हें देखेंगे, जिन्होंने अल्लाह पर झूठ बोले कि उनके मुख काले होंगे। तो क्या नरक में नहीं है अभिमानियों का स्थान?
﴿وَيُنَجِّي اللَّهُ الَّذِينَ اتَّقَوْا بِمَفَازَتِهِمْ لَا يَمَسُّهُمُ السُّوءُ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ﴾
तथा बचा लेगा अल्लाह जो आज्ञाकारी रहे, उन्हें, उनकी सफलता के साथ। नहीं लगेगा उन्हें कोई दुःख और न वे उदासीन होंगे।
﴿اللَّهُ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ﴾
अल्लाह ही प्रत्येक वस्तु का पैदा करने वाला तथा वही प्रत्येक वस्तु का रक्षक है।
﴿لَهُ مَقَالِيدُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ اللَّهِ أُولَٰئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ﴾
उसी के अधिकार में हैं आकाशों तथा धरती की कुंजियाँ[1] तथा जिन्होंने नकार दिया अल्लाह की आयतों को, वही क्षति में हैं।
﴿قُلْ أَفَغَيْرَ اللَّهِ تَأْمُرُونِّي أَعْبُدُ أَيُّهَا الْجَاهِلُونَ﴾
आप कह दें: तो क्या अल्लाह से अन्य की तुम मुझे इबादत (वंदना) करने का आदेश देते हो, हे अज्ञानो?
﴿وَلَقَدْ أُوحِيَ إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكَ لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ﴾
तथा वह़्यी की गई है आपकी ओर तथा उन (नबियों) की ओर, जो आपसे पूर्व (हुए) कि यदि आपने शिर्क किया, तो अवश्य व्यर्थ हो जायेगा आपका कर्म तथा आप हो जायेंगे[1] क्षतिग्रस्तों में से।
﴿بَلِ اللَّهَ فَاعْبُدْ وَكُنْ مِنَ الشَّاكِرِينَ﴾
बल्कि आप अल्लाह ही की इबादत (वंदना) करें तथा कृज्ञयों में रहें।
﴿وَمَا قَدَرُوا اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ وَالْأَرْضُ جَمِيعًا قَبْضَتُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَالسَّمَاوَاتُ مَطْوِيَّاتٌ بِيَمِينِهِ ۚ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ﴾
तथा उन्होंने अल्लाह का सम्मान नहीं किया, जैसे उसका सम्मान करना चाहिये था और धरती पूरी उसकी एक मुट्ठी में होगी, प्रलय के दिन तथा आकाश लपेटे हुए होंगे उसके हाथ[1] में। वह पवित्र तथा उच्च है उस शिर्क से, जो वे कर रहे हैं।
﴿وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَصَعِقَ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَمَنْ فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَنْ شَاءَ اللَّهُ ۖ ثُمَّ نُفِخَ فِيهِ أُخْرَىٰ فَإِذَا هُمْ قِيَامٌ يَنْظُرُونَ﴾
तथा सूर (नरसिंधघा) फूँका[1] जायेगा, तो निश्चेत होकर गिर जायेंगे, जो आकाशों तथा धरती में हैं। परन्तु जिसे अल्लाह चाहे, फिर उसे पुनः फूँका जायेगा, तो सहसा सब खड़े देख रहे होंगे।
﴿وَأَشْرَقَتِ الْأَرْضُ بِنُورِ رَبِّهَا وَوُضِعَ الْكِتَابُ وَجِيءَ بِالنَّبِيِّينَ وَالشُّهَدَاءِ وَقُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْحَقِّ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ﴾
तथा जगमगाने लगेगी धरती, अपने पालनहार की ज्योति से और प्रस्तुत किये जायेंगे कर्म लेख तथा लाया जायेगा नबियों और साक्षियों को तथा निर्णय किया जायेगा उनके बीच सत्य (न्याय) के साथ और उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
﴿وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَا عَمِلَتْ وَهُوَ أَعْلَمُ بِمَا يَفْعَلُونَ﴾
तथा पूरा-पूरा दिया जायेगा प्रत्येक जीव को, उसका कर्मफल तथा वह भली-भाँति जानने वाला है उसे, जो वे कर रहे हैं।
﴿وَسِيقَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِلَىٰ جَهَنَّمَ زُمَرًا ۖ حَتَّىٰ إِذَا جَاءُوهَا فُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِنْكُمْ يَتْلُونَ عَلَيْكُمْ آيَاتِ رَبِّكُمْ وَيُنْذِرُونَكُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَٰذَا ۚ قَالُوا بَلَىٰ وَلَٰكِنْ حَقَّتْ كَلِمَةُ الْعَذَابِ عَلَى الْكَافِرِينَ﴾
तथा हाँके जायेंगे, जो काफ़िर हो गये नरक की ओर, झुण्ड बनाकर। यहाँतक कि जब वे उसके पास आयेंगे, तो खोल दिये जायेंगे उसके द्वार तथा उनसे कहेंगे उसके रक्षक (फ़रिश्तेः) क्या नहीं आये तुम्हारे पास रसूल तुममें से, जो तुम्हें सुनाते, तुम्हारे पालनहार की आयतें तथा सचेत करते तुम्हें, इस दिन का सामना करने से? वे कहेंगेः क्यों नहीं? परन्तु, सिध्द हो गया यातना का शब्द, काफ़िरों पर।
﴿قِيلَ ادْخُلُوا أَبْوَابَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۖ فَبِئْسَ مَثْوَى الْمُتَكَبِّرِينَ﴾
कहा जायेगा कि प्रवेश कर जाओ नरक के द्वारों में, सदावासी होकर उसमें। तो बुरा है घमंडियों का निवास स्थान।
﴿وَسِيقَ الَّذِينَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ إِلَى الْجَنَّةِ زُمَرًا ۖ حَتَّىٰ إِذَا جَاءُوهَا وَفُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا سَلَامٌ عَلَيْكُمْ طِبْتُمْ فَادْخُلُوهَا خَالِدِينَ﴾
तथा भेज दिये जायेंगे, जो लोग डरते रहे अपने पालनहार से, स्वर्ग की ओर झुण्ड बनाकर। यहाँतक कि जब वे आ जायेंगे उसके पास तथा खोल दिये जायेंगे उसके द्वार और कहेंगे उनसे उसके रक्षकः सलाम है तुमपर, तुम प्रसन्न रहो। तुम प्रवेश कर जाओ उसमें, सदावासी होकर।
﴿وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي صَدَقَنَا وَعْدَهُ وَأَوْرَثَنَا الْأَرْضَ نَتَبَوَّأُ مِنَ الْجَنَّةِ حَيْثُ نَشَاءُ ۖ فَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ﴾
तथा वे कहेंगेः सब प्रशंसा अल्लाह के लिए हैं, जिसने सच कर दिखाया हमसे अपना वचन तथा हमें उत्तराधिकारी बना दिया इस धरती का, हम रहें स्वर्ग में, जहाँ चाहें। क्या ही अच्छा है कार्यकर्ताओं[1] का प्रतिफल।
﴿وَتَرَى الْمَلَائِكَةَ حَافِّينَ مِنْ حَوْلِ الْعَرْشِ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ ۖ وَقُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْحَقِّ وَقِيلَ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ﴾
तथा आप देखेंगे फ़रिश्तों को घेरे हुए अर्श (सिंहासन) के चतुर्दिक, वे पवित्रता गान कर रहे होंगे अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ, निर्णय कर दिया जायेगा लोगों के बीच सत्य के साथ तथा कह दिया जायेगा कि सब प्रशंसा अल्लाह, सर्वलोक के पालनहार के लिए है।[1]
الترجمات والتفاسير لهذه السورة:
- سورة الزمر : الترجمة الأمهرية አማርኛ - الأمهرية
- سورة الزمر : اللغة العربية - المختصر في تفسير القرآن الكريم العربية - العربية
- سورة الزمر : اللغة العربية - التفسير الميسر العربية - العربية
- سورة الزمر : اللغة العربية - معاني الكلمات العربية - العربية
- سورة الزمر : الترجمة الأسامية অসমীয়া - الأسامية
- سورة الزمر : الترجمة الأذرية Azərbaycanca / آذربايجان - الأذرية
- سورة الزمر : الترجمة البنغالية বাংলা - البنغالية
- سورة الزمر : الترجمة البوسنية للمختصر في تفسير القرآن الكريم Bosanski - البوسنية
- سورة الزمر : الترجمة البوسنية - كوركت Bosanski - البوسنية
- سورة الزمر : الترجمة البوسنية - ميهانوفيتش Bosanski - البوسنية
- سورة الزمر : الترجمة الألمانية - بوبنهايم Deutsch - الألمانية
- سورة الزمر : الترجمة الألمانية - أبو رضا Deutsch - الألمانية
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- سورة الزمر : الترجمة الإنجليزية - هلالي-خان English - الإنجليزية
- سورة الزمر : الترجمة الإسبانية Español - الإسبانية
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- سورة الزمر : الترجمة الإسبانية (أمريكا اللاتينية) - المنتدى الإسلامي Español - الإسبانية
- سورة الزمر : الترجمة الفارسية للمختصر في تفسير القرآن الكريم فارسی - الفارسية
- سورة الزمر : الترجمة الفارسية - دار الإسلام فارسی - الفارسية
- سورة الزمر : الترجمة الفارسية - حسين تاجي فارسی - الفارسية
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