الترجمة الهندية
ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَلَهُ الْحَمْدُ فِي الْآخِرَةِ ۚ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْخَبِيرُ﴾
सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसके अधिकार में है, जो आकाशों तथा धरती में है और उसी की प्रशंसा है आख़िरत (परलोक) में और वही उपाय जानने वाला, सबसे सूचित है।
﴿يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِي الْأَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنْزِلُ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا يَعْرُجُ فِيهَا ۚ وَهُوَ الرَّحِيمُ الْغَفُورُ﴾
वह जानता है, जो कुछ घुसता है धरती के भीतर तथा जो[1] निकलता है उससे तथा जो उतरता है आकाश[2] से और चढ़ता है उसमें[3] तथा वह अति दयावान्, क्षमी है।
﴿وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَأْتِينَا السَّاعَةُ ۖ قُلْ بَلَىٰ وَرَبِّي لَتَأْتِيَنَّكُمْ عَالِمِ الْغَيْبِ ۖ لَا يَعْزُبُ عَنْهُ مِثْقَالُ ذَرَّةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ وَلَا أَصْغَرُ مِنْ ذَٰلِكَ وَلَا أَكْبَرُ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُبِينٍ﴾
तथा कहा काफ़िरों ने कि हमपर प्रलय नहीं आयेगी। आप कह दें: क्यों नहीं? मेरे पालनहार की शपथ! -वह तुमपर अवश्य आयेगी- जो परोक्ष का ज्ञानी है। नहीं छुपा रह सकता उससे कण बराबर (भी) आकाशों तथा धरती में, न उससे छोटी कोई चीज़ और न बड़ी, किन्तु, वह खुली पुस्तक में (अंकित) है।[1]
﴿لِيَجْزِيَ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ۚ أُولَٰئِكَ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ﴾
ताकि[1] वह बदला दे उन्हें, जो ईमान लाये तथा सुकर्म किये। उन्हीं के लिए क्षमा तथा सम्मानित जीविका है।
﴿وَالَّذِينَ سَعَوْا فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مِنْ رِجْزٍ أَلِيمٌ﴾
तथा जिन्होंने प्रयत्न किये हमारी आयतों में विवश[1] करने का, तो यही हैं, जिनके लिए यातना है अति घोर दुःखदायी।
﴿وَيَرَى الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ الَّذِي أُنْزِلَ إِلَيْكَ مِنْ رَبِّكَ هُوَ الْحَقَّ وَيَهْدِي إِلَىٰ صِرَاطِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ﴾
तथा (साक्षात) देख[1] लेंगे वे जिन्हें उसका ज्ञान दिया गया है, जो अवतरित किया गया है आपकी ओर आपके पालनहार की ओर से। वही सत्य है तथा सुपथ दर्शाता है, अति प्रभुत्वशाली, प्रशंसित का सुपथ।
﴿وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا هَلْ نَدُلُّكُمْ عَلَىٰ رَجُلٍ يُنَبِّئُكُمْ إِذَا مُزِّقْتُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّكُمْ لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ﴾
तथा काफ़िरों ने कहाः क्या हम तुम्हें एक ऐसे व्यक्ति को बतायें, जो तुम्हें सूचना देता है कि जब तुम पूर्णतः चूर-चूर हो जाओगे, तो अवश्य तुम एक नई उत्पत्ति में होगे?
﴿أَفْتَرَىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا أَمْ بِهِ جِنَّةٌ ۗ بَلِ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ فِي الْعَذَابِ وَالضَّلَالِ الْبَعِيدِ﴾
उसने बना ली है अल्लाह पर एक मिथ्या बात अथवा वह पागल हो गया है। बल्कि जो विश्वास (ईमान) नहीं रखते आख़िरत (परलोक) पर, वे यातना[1] तथा दूर के कुपथ में हैं।
﴿أَفَلَمْ يَرَوْا إِلَىٰ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ مِنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۚ إِنْ نَشَأْ نَخْسِفْ بِهِمُ الْأَرْضَ أَوْ نُسْقِطْ عَلَيْهِمْ كِسَفًا مِنَ السَّمَاءِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِكُلِّ عَبْدٍ مُنِيبٍ﴾
क्या उन्होंने नहीं देखा उसकी ओर, जो उनके आगे तथा उनके पीछे आकाश और धरती है। यदि हम चाहें, तो धंसा दें उनके सहित धरती को अथवा गिरा दें उनपर कोई खण्ड आकाश से। वास्तव में, इसमें एक बड़ी निशानी है प्रत्येक भक्त के लिए, जो ध्यानमग्न हो।
﴿۞ وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ مِنَّا فَضْلًا ۖ يَا جِبَالُ أَوِّبِي مَعَهُ وَالطَّيْرَ ۖ وَأَلَنَّا لَهُ الْحَدِيدَ﴾
तथा हमने प्रदान किया दावूद को अपना कुछ अनुग्रह,[1] हे पर्वतो! सरुचि महिमा गान करो[2] उसके साथ तथा हे पक्षियो! तथा हमने कोमल कर दिया उसके लिए लाहा को।
﴿أَنِ اعْمَلْ سَابِغَاتٍ وَقَدِّرْ فِي السَّرْدِ ۖ وَاعْمَلُوا صَالِحًا ۖ إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ﴾
कि बनाओ भरपूर कवचें तथा अनुमान रखो उसकी कड़ियों का तथा सदाचार करो। जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे मैं देख रहा हूँ।
﴿وَلِسُلَيْمَانَ الرِّيحَ غُدُوُّهَا شَهْرٌ وَرَوَاحُهَا شَهْرٌ ۖ وَأَسَلْنَا لَهُ عَيْنَ الْقِطْرِ ۖ وَمِنَ الْجِنِّ مَنْ يَعْمَلُ بَيْنَ يَدَيْهِ بِإِذْنِ رَبِّهِ ۖ وَمَنْ يَزِغْ مِنْهُمْ عَنْ أَمْرِنَا نُذِقْهُ مِنْ عَذَابِ السَّعِيرِ﴾
तथा ( हमने वश में कर दिया) सुलैमान[1] के लिए वायु को। उसका प्रातः चलना एक महीने का तथा संध्या का चलना एक महीने का[2] होता था तथा हमने बहा दिये उसके लिए तांबे के स्रोत तथा कुछ जिन्न कार्यरत थे उसके समक्ष, उसके पालनहार की अनुमति से तथा उनमें से जो फिरेगा हमारे आदेश से, तो हम चखायेंगे[3] उसे भड़कती अग्नि की यातना।
﴿يَعْمَلُونَ لَهُ مَا يَشَاءُ مِنْ مَحَارِيبَ وَتَمَاثِيلَ وَجِفَانٍ كَالْجَوَابِ وَقُدُورٍ رَاسِيَاتٍ ۚ اعْمَلُوا آلَ دَاوُودَ شُكْرًا ۚ وَقَلِيلٌ مِنْ عِبَادِيَ الشَّكُورُ﴾
वह बनाते थे उसके लिए, जो वह चाहता था; भवन (मस्जिदें), चित्र, बड़े लगन जलाशयों (तालाबों) के समान तथा भारी देगें, जो हिल न सकें। हे दावूद के परिजनो! कर्म करो कृतज्ञ होकर और मेरे भक्तों में थोड़े ही कृतज्ञ होते हैं।
﴿فَلَمَّا قَضَيْنَا عَلَيْهِ الْمَوْتَ مَا دَلَّهُمْ عَلَىٰ مَوْتِهِ إِلَّا دَابَّةُ الْأَرْضِ تَأْكُلُ مِنْسَأَتَهُ ۖ فَلَمَّا خَرَّ تَبَيَّنَتِ الْجِنُّ أَنْ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ الْغَيْبَ مَا لَبِثُوا فِي الْعَذَابِ الْمُهِينِ﴾
फिर जब हमने उस (सुलैमान) पर मौत का निर्णय कर दिया, तो जिन्नों को उनके मरण पर एक घुन के सिवा किसी ने सूचित नहीं किया, जो उसकी छड़ी खा रहा था।[1] फिर जब वह गिर गया, तो जिन्नों पर ये बात खुली कि यदि वे परोक्ष का ज्ञान रखते, तो इस अपमानकारी[2] यातना में नहीं पड़े रहते।
﴿لَقَدْ كَانَ لِسَبَإٍ فِي مَسْكَنِهِمْ آيَةٌ ۖ جَنَّتَانِ عَنْ يَمِينٍ وَشِمَالٍ ۖ كُلُوا مِنْ رِزْقِ رَبِّكُمْ وَاشْكُرُوا لَهُ ۚ بَلْدَةٌ طَيِّبَةٌ وَرَبٌّ غَفُورٌ﴾
सबा[1] की जाति के लिए उनकी बस्तियों में एक निशानी[2] थीः बाग़ थे दायें और बायें। खाओ अपने पालनहार का दिया हुआ और उसके कृतज्ञ रहो। स्वच्छ नगर है तथा अति क्षमि पालनहार।
﴿فَأَعْرَضُوا فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ سَيْلَ الْعَرِمِ وَبَدَّلْنَاهُمْ بِجَنَّتَيْهِمْ جَنَّتَيْنِ ذَوَاتَيْ أُكُلٍ خَمْطٍ وَأَثْلٍ وَشَيْءٍ مِنْ سِدْرٍ قَلِيلٍ﴾
परन्तु, उन्होंने मुँह फेर लिया, तो हमने भेज दी उनपर बाँध तोड़ बाढ़ तथा बदल दिया हमने उनके दो बाग़ों को, दो कड़वे फलों के बाग़ों और झाऊ तथा कुछ बैरी से।
﴿ذَٰلِكَ جَزَيْنَاهُمْ بِمَا كَفَرُوا ۖ وَهَلْ نُجَازِي إِلَّا الْكَفُورَ﴾
ये कुफल दिया हमने उनके कृतघ्न होने के कारण तथा हम कृतघ्नों ही को कुफल दिया करते हैं।
﴿وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ الْقُرَى الَّتِي بَارَكْنَا فِيهَا قُرًى ظَاهِرَةً وَقَدَّرْنَا فِيهَا السَّيْرَ ۖ سِيرُوا فِيهَا لَيَالِيَ وَأَيَّامًا آمِنِينَ﴾
और हमने बना दी थी उनके बीच तथा उनकी बस्तियों के बीच, जिनमें हमने सम्पन्नता[1] प्रदान की थी, खुली बस्तियाँ तथा नियत कर दिया था उनमें, चलने का स्थान[2] (कि) चलो उसमें रात्रि तथा दिनों के समय शान्त[3] होकर।
﴿فَقَالُوا رَبَّنَا بَاعِدْ بَيْنَ أَسْفَارِنَا وَظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ فَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ وَمَزَّقْنَاهُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ﴾
तो उन्होंने कहाः हे हमारे पालनहार! दूरी[1] करदे हमारी यात्राओं के बीच तथा उन्होंने अत्याचार किया अपने ऊपर। अन्ततः, हमने उन्हें कहानियाँ[2] बना दिया और तित्तर-वित्तर कर दिया। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ (शिक्षायें) हैं प्रत्येक अति धैर्यवान, कृतज्ञ के लिए।
﴿وَلَقَدْ صَدَّقَ عَلَيْهِمْ إِبْلِيسُ ظَنَّهُ فَاتَّبَعُوهُ إِلَّا فَرِيقًا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ﴾
तथा सच कर दिया इब्लीस ने उनपर अपना अंकलन।[1] तो उन्होंने अनुसरण किया उसका एक समुदाय को छोड़कर ईमान वालों के।
﴿وَمَا كَانَ لَهُ عَلَيْهِمْ مِنْ سُلْطَانٍ إِلَّا لِنَعْلَمَ مَنْ يُؤْمِنُ بِالْآخِرَةِ مِمَّنْ هُوَ مِنْهَا فِي شَكٍّ ۗ وَرَبُّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ حَفِيظٌ﴾
और नहीं था उसका उनपर कुछ अधिकार (दबाव), किन्तु, ताकि हम जान लें कि कौन ईमान रखता है आख़िरत (परलोक) पर उनमें से, जो उसके विषय में किसी संदेह में हैं तथा आपका पालनहार प्रत्येक चीज़ का निरीक्षक है।[1]
﴿قُلِ ادْعُوا الَّذِينَ زَعَمْتُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ ۖ لَا يَمْلِكُونَ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ وَمَا لَهُمْ فِيهِمَا مِنْ شِرْكٍ وَمَا لَهُ مِنْهُمْ مِنْ ظَهِيرٍ﴾
आप कह दें: उन्हें पुकारो[1] जिन्हें तुम (पूज्य) समझते हो अल्लाह के सिवा। वह नहीं अधिकार रखते कण बराबर भी, न आकाशों में न धरती में तथा नहीं है उनका उन दोनों में कोई भाग और नहीं है उस अल्लाह का उनमें से कोई सहायक।
﴿وَلَا تَنْفَعُ الشَّفَاعَةُ عِنْدَهُ إِلَّا لِمَنْ أَذِنَ لَهُ ۚ حَتَّىٰ إِذَا فُزِّعَ عَنْ قُلُوبِهِمْ قَالُوا مَاذَا قَالَ رَبُّكُمْ ۖ قَالُوا الْحَقَّ ۖ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ﴾
तथा नहीं लाभ देगी अभिस्तावना (सिफ़ारिश) अल्लाह के पास, परन्तु जिसके लिए अनुमति देगा।[1] यहाँ[2] तक कि जब दूर कर दिया जाता है उद्वेग उनके दिलों से, तो वे (फ़रिश्ते) कहते हैं कि तुम्हारे पालनहार ने क्या कहा? वे कहते हैं कि सत्य कहा तथा वह अति उच्च, महान है।
﴿۞ قُلْ مَنْ يَرْزُقُكُمْ مِنَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ قُلِ اللَّهُ ۖ وَإِنَّا أَوْ إِيَّاكُمْ لَعَلَىٰ هُدًى أَوْ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ﴾
आप (मुश्रिकों) से प्रश्न करें कि कौन जीविका प्रदान करता है तुम्हें, आकाशों[1] तथा धरती से? आप कह दें कि अल्लाह! तथा हम अथवा तुम अवश्य सुपथ पर हैं अथवा खुले कुपथ में हैं।
﴿قُلْ لَا تُسْأَلُونَ عَمَّا أَجْرَمْنَا وَلَا نُسْأَلُ عَمَّا تَعْمَلُونَ﴾
आप कह दें: तुमसे नहीं प्रश्न किया जायेगा हमारे अपराधों के विषय में और न हमसे प्रश्न किया जायेगा, तुम्हारे कर्मों के[1] संबन्ध में।
﴿قُلْ يَجْمَعُ بَيْنَنَا رَبُّنَا ثُمَّ يَفْتَحُ بَيْنَنَا بِالْحَقِّ وَهُوَ الْفَتَّاحُ الْعَلِيمُ﴾
आप कह दें कि एकत्र[1] कर देगा हमें हमारा पालनहार। फिर निर्णय कर देगा हमारे बीच सत्य के साथ तथा वही अति निर्णयकारी, सर्वज्ञ है।
﴿قُلْ أَرُونِيَ الَّذِينَ أَلْحَقْتُمْ بِهِ شُرَكَاءَ ۖ كَلَّا ۚ بَلْ هُوَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ﴾
आप कह दें कि तनिक मुझे उन्हें दिखा दो, जिन्हें तुमने मिला दिया है अल्लाह के साथ साझी[1] बनाकर? ऐसा कदापि नहीं। बल्कि वही अल्लाह है अत्यंत प्रभावशाली तथा गुणी।
﴿وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا كَافَّةً لِلنَّاسِ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ﴾
तथा नहीं भेजा है हमने आप[1] को, परन्तु सब मनुष्यों के लिए शुभ सूचना देने तथा सचेत करने वाला बनाकर। किन्तु, अधिक्तर लोग ज्ञान नहीं रखते।
﴿وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ﴾
तथा वह कहते[1] हैं कि ये वचन कब पूरा होगा, यदि तुम सत्यवादी हो?
﴿قُلْ لَكُمْ مِيعَادُ يَوْمٍ لَا تَسْتَأْخِرُونَ عَنْهُ سَاعَةً وَلَا تَسْتَقْدِمُونَ﴾
आप उनसे कह दें कि एक दिन वचन का निश्चित[1] है। वे नहीं पीछे होंगे उससे क्षण भर और न आगे होंगे।
﴿وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَنْ نُؤْمِنَ بِهَٰذَا الْقُرْآنِ وَلَا بِالَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ وَلَوْ تَرَىٰ إِذِ الظَّالِمُونَ مَوْقُوفُونَ عِنْدَ رَبِّهِمْ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ الْقَوْلَ يَقُولُ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لَوْلَا أَنْتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِينَ﴾
तथा काफ़िरों ने कहा कि हम कदापि ईमान नहीं लायेंगे इस क़ुर्आन पर और न उसपर, जो इससे पूर्व की पुस्तक हैं और यदि आप देखेंगे इन अत्याचारियों को खड़े हुए अपने पालनहार के समक्ष, तो वे दोषारोपण कर रहे होंगे एक-दूसरे पर। जो निर्बल समझे जा रहे थे, वे कहेंगे उनसे, जो बड़े बन रहे थेः यदि तुम न होते, तो हम अवश्य ईमान लाने वालों[1] में होते।
﴿قَالَ الَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لِلَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا أَنَحْنُ صَدَدْنَاكُمْ عَنِ الْهُدَىٰ بَعْدَ إِذْ جَاءَكُمْ ۖ بَلْ كُنْتُمْ مُجْرِمِينَ﴾
वे कहेंगे जो बड़े बने हुए थे, उनसे, जो निर्बल समझे जा रहे थेः क्या हमने तुम्हे रोका सुपथ से, जब वह तुम्हारे पास आया? बल्कि तुमही अपराधी थे।
﴿وَقَالَ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا بَلْ مَكْرُ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ إِذْ تَأْمُرُونَنَا أَنْ نَكْفُرَ بِاللَّهِ وَنَجْعَلَ لَهُ أَنْدَادًا ۚ وَأَسَرُّوا النَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ وَجَعَلْنَا الْأَغْلَالَ فِي أَعْنَاقِ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ هَلْ يُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾
तथा कहेंगे जो निर्बल होंगे, उनसे, जो बड़े (अहंकारी) होंगेःबल्कि रात-दिन के षड्यंत्र[1] ने (ऐसा किया), जब तुम हमें आदेश दे रहे थे कि हम कुफ़्र करें अल्लाह के साथ तथा बनायें उसके साझी तथा वे अपने मन में पछतायेंगे, जब यातना देखेंगे और हम तौक़ डाल देंगे उनके गलों में, जो काफ़िर हो गये, वे नहीं बदला दिये जायेंगे, परन्तु उसी का, जो वे कर रहे थे!
﴿وَمَا أَرْسَلْنَا فِي قَرْيَةٍ مِنْ نَذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتْرَفُوهَا إِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُمْ بِهِ كَافِرُونَ﴾
और नहीं भेजा हमने किसी बस्ती में कोई सचेतकर्ता (नबी), परन्तु कहा उसके सम्पन्न लोगों नेः हम जिस चीज़ के साथ तुम भेजे गये हो, उसे नहीं मानते हैं।[1]
﴿وَقَالُوا نَحْنُ أَكْثَرُ أَمْوَالًا وَأَوْلَادًا وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ﴾
तथा कहा कि हम अधिक हैं तुमसे धन और संतान में तथा हम यातना ग्रस्त होने वाले नहीं हैं।
﴿قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ﴾
आप कह दें कि वास्तव में, मेरा पालनहार फैला देता है जीविका को, जिसके लिए चाहता है और नापकर देता है। किन्तु, अधिक्तर लोग ज्ञान नहीं रखते।
﴿وَمَا أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُمْ بِالَّتِي تُقَرِّبُكُمْ عِنْدَنَا زُلْفَىٰ إِلَّا مَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَأُولَٰئِكَ لَهُمْ جَزَاءُ الضِّعْفِ بِمَا عَمِلُوا وَهُمْ فِي الْغُرُفَاتِ آمِنُونَ﴾
और तुम्हारे धन और तुम्हारी संतान ऐसी नहीं हैं कि तुम्हें हमारे कुछ समीप[1] कर दें। परन्तु, जो ईमान लाये तथा सदाचार करे, तो यही हैं, जिनके लिए दोहरा प्रतिफल है और यही ऊँचे भवनों में शान्त रहने वाले हैं।
﴿وَالَّذِينَ يَسْعَوْنَ فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُولَٰئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ﴾
तथा जो प्रयास करते हैं हमारी आयतों में विवश करने के लिए,[1] तो वही यातना में ग्रस्त होंगे।
﴿قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَهُ ۚ وَمَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ شَيْءٍ فَهُوَ يُخْلِفُهُ ۖ وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ﴾
आप कह दें: मेरा पालनहार ही फैलाता है जीविका को जिसके लिए चाहता है, अपने भक्तों में से और तंग करता है उसके लिए और जो भी तुम दान करोगे, तो वह उसका पूरा बदला देगा और वही उत्तम जीविका देने वाला है।
﴿وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ جَمِيعًا ثُمَّ يَقُولُ لِلْمَلَائِكَةِ أَهَٰؤُلَاءِ إِيَّاكُمْ كَانُوا يَعْبُدُونَ﴾
तथा जिस दिन एकत्र करेगा उनसब को, फिर कहेगा फ़रिश्तों सेः क्या यही तुम्हारी इबादत (वंदना) कर रहे थे।
﴿قَالُوا سُبْحَانَكَ أَنْتَ وَلِيُّنَا مِنْ دُونِهِمْ ۖ بَلْ كَانُوا يَعْبُدُونَ الْجِنَّ ۖ أَكْثَرُهُمْ بِهِمْ مُؤْمِنُونَ﴾
वह कहेंगेः तू पवित्र है! तू ही हमारा संरक्षक है, न कि ये। बल्कि ये इबादत करते रहे जिन्नों[1] की। इनमें अधिक्तर उन्हींपर ईमान लाने वाले हैं।
﴿فَالْيَوْمَ لَا يَمْلِكُ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ نَفْعًا وَلَا ضَرًّا وَنَقُولُ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذُوقُوا عَذَابَ النَّارِ الَّتِي كُنْتُمْ بِهَا تُكَذِّبُونَ﴾
तो आज तुम[1] में से कोई एक-दूसरे को लाभ अथवा हानि पहुँचाने का अधिकार नहीं रखेगा तथा हम कह देंगे अत्याचारियों से कि तुम अग्नि की यातना चखो, जिसे तुम झुठला रहे थे।
﴿وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ قَالُوا مَا هَٰذَا إِلَّا رَجُلٌ يُرِيدُ أَنْ يَصُدَّكُمْ عَمَّا كَانَ يَعْبُدُ آبَاؤُكُمْ وَقَالُوا مَا هَٰذَا إِلَّا إِفْكٌ مُفْتَرًى ۚ وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ إِنْ هَٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُبِينٌ﴾
और जब सुनाई जाती हैं उनके समक्ष हमारी खुली आयतें, तो कहते हैं: ये तो एक पुरुष है, जो चाहता है कि तुम्हें रोक दे उन पूज्यों से, जिनकी इबादत करते रहे हैं तुम्हारे पूर्वज तथा उन्होंने कहा कि ये तो बस एक झूठी बनायी हुई बात है तथा कहा काफ़िरों ने इस सत्य को कि ये तो बस एक प्रत्यक्ष (खुला) जादू है।
﴿وَمَا آتَيْنَاهُمْ مِنْ كُتُبٍ يَدْرُسُونَهَا ۖ وَمَا أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمْ قَبْلَكَ مِنْ نَذِيرٍ﴾
जबकि हमने नहीं प्रदान की है इन (मक्का वासियों) को कोई पुस्तक, जिसे ये पढ़ते हों तथा न हमने भेजा है इनकी ओर आपसे पहले कोई सचेत करने वाला।[1]
﴿وَكَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَمَا بَلَغُوا مِعْشَارَ مَا آتَيْنَاهُمْ فَكَذَّبُوا رُسُلِي ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ﴾
तथा झुठलाया था इनसे पूर्व के लोगों ने और नहीं पहुँचे ये उसके दसवें भाग को भी, जो हमने प्रदान किया था उन्हें। तो उन्होंने झुठला दिया मेरे रसूलों को, अन्ततः, मेरा इन्कार कैसा रहा?[1]
﴿۞ قُلْ إِنَّمَا أَعِظُكُمْ بِوَاحِدَةٍ ۖ أَنْ تَقُومُوا لِلَّهِ مَثْنَىٰ وَفُرَادَىٰ ثُمَّ تَتَفَكَّرُوا ۚ مَا بِصَاحِبِكُمْ مِنْ جِنَّةٍ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا نَذِيرٌ لَكُمْ بَيْنَ يَدَيْ عَذَابٍ شَدِيدٍ﴾
आप कह दें कि मैं बस तुम्हें एक बात की नसीह़त कर रहा हूँ कि तुम अल्लाह के लिए दो-दो तथा अकेले-अकेले खड़े हो जाओ। फिर सोचो। तुम्हारे साथी को कोई पागलपन नहीं है।[1] वह तो बस सचेत करने वाले हैं तुम्हें, आगामी कड़ी यातना से।
﴿قُلْ مَا سَأَلْتُكُمْ مِنْ أَجْرٍ فَهُوَ لَكُمْ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى اللَّهِ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ﴾
आप कह दें: मैंने तुमसे कोई बदला माँगा है, तो वह तुम्हारे[1] ही लिए है। मेरा बदला तो बस अल्लाह पर है और वह प्रत्येक वस्तु पर साक्षी है।
﴿قُلْ إِنَّ رَبِّي يَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَّامُ الْغُيُوبِ﴾
आप कह दें कि मेरा पालनहार वह़्यी करता है सत्य की। वह परोक्षों का अति ज्ञानी है।
﴿قُلْ جَاءَ الْحَقُّ وَمَا يُبْدِئُ الْبَاطِلُ وَمَا يُعِيدُ﴾
आप कह दें कि सत्य आ गया और असत्य न (कुछ का) आरंभ कर सकता है और न (उसे) पुनः ला सकता है।
﴿قُلْ إِنْ ضَلَلْتُ فَإِنَّمَا أَضِلُّ عَلَىٰ نَفْسِي ۖ وَإِنِ اهْتَدَيْتُ فَبِمَا يُوحِي إِلَيَّ رَبِّي ۚ إِنَّهُ سَمِيعٌ قَرِيبٌ﴾
आप कह दें कि यदि मैं कुपथ हो गया, तो मेरे कुपथ होने का (भार) मुझपर है और यदि मैं सुपथ पर हूँ, तो उस वह़्यी के कारण जिसे मेरी ओर मेरा पालनहार उतार रहा है। वह सब कुछ सुनने वाला, समीप है।
﴿وَلَوْ تَرَىٰ إِذْ فَزِعُوا فَلَا فَوْتَ وَأُخِذُوا مِنْ مَكَانٍ قَرِيبٍ﴾
तथा यदि आप देखेंगे, जब वे घबराये हुए[1] होंगे, तो उनके खो जाने का कोई उपाय न होगा तथा पकड़ लिए जायेंगे समीप स्थान से।
﴿وَقَالُوا آمَنَّا بِهِ وَأَنَّىٰ لَهُمُ التَّنَاوُشُ مِنْ مَكَانٍ بَعِيدٍ﴾
और कहेंगेः हम उस[1] पर ईमान लाये तथा कहाँ हाथ आ सकता है उनके (ईमान), इतने दूर स्थान[2] से?
﴿وَقَدْ كَفَرُوا بِهِ مِنْ قَبْلُ ۖ وَيَقْذِفُونَ بِالْغَيْبِ مِنْ مَكَانٍ بَعِيدٍ﴾
जबकि उन्होंने कुफ़्र कर दिया पहले उसके साथ और तीर मारते रहे बिन देखे, दूर[1] से।
﴿وَحِيلَ بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ مَا يَشْتَهُونَ كَمَا فُعِلَ بِأَشْيَاعِهِمْ مِنْ قَبْلُ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا فِي شَكٍّ مُرِيبٍ﴾
और रोक बना दी जायेगी उनके तथा उसके बीच, जिसकी वे कामना करेंगे जैसे किया गया इनके जैसों के साथ, इससे पहले। वास्तव में, वे संदेह में पड़े थे।
الترجمات والتفاسير لهذه السورة:
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