الترجمة الهندية
ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ أَتَىٰ أَمْرُ اللَّهِ فَلَا تَسْتَعْجِلُوهُ ۚ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ﴾
अल्लाह का आदेश आ गया है। अतः (हे काफ़िरो!) उसके शीघ्र आने की माँग न करो। वह (अल्लाह) पवित्र तथा उस शिर्क (मिश्रणवाद) से ऊँचा है, जो वे कर रहे हैं।
﴿يُنَزِّلُ الْمَلَائِكَةَ بِالرُّوحِ مِنْ أَمْرِهِ عَلَىٰ مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ أَنْ أَنْذِرُوا أَنَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا أَنَا فَاتَّقُونِ﴾
वह फ़रिश्तों को वह़्यी के साथ, अपने आदेश से, अपने जिस भक्त पर चाहता है, उतारता है कि (लोगों को) सावधान करो कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है, अतः मुझसे ही डरो।
﴿خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ ۚ تَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ﴾
उसने आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति सत्य के साथ की है, वह उनके शिर्क से बहुत ऊँचा है।
﴿خَلَقَ الْإِنْسَانَ مِنْ نُطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُبِينٌ﴾
उसने मनुष्य की उत्पत्ति वीर्य से की है, फिर वह अकस्मात् खुला झगड़ालू बन गया।
﴿وَالْأَنْعَامَ خَلَقَهَا ۗ لَكُمْ فِيهَا دِفْءٌ وَمَنَافِعُ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ﴾
तथा चौपायों की उत्पत्ति की, जिनमें तुम्हारे लिए गर्मी[1] और बहुत-से लाभ हैं और उनमें से कुछको खाते हो।
﴿وَلَكُمْ فِيهَا جَمَالٌ حِينَ تُرِيحُونَ وَحِينَ تَسْرَحُونَ﴾
तथा उनमें तुम्हारे लिए एक शोभा है, जिस समय संध्या को चराकर लाते हो और जब प्रातः चराने ले जाते हो।
﴿وَتَحْمِلُ أَثْقَالَكُمْ إِلَىٰ بَلَدٍ لَمْ تَكُونُوا بَالِغِيهِ إِلَّا بِشِقِّ الْأَنْفُسِ ۚ إِنَّ رَبَّكُمْ لَرَءُوفٌ رَحِيمٌ﴾
और वे तुम्हारे बोझ, उन नगरों तक लादकर ले जाते हैं, जिनतक तुम बिना कड़े परिश्रम के नहीं पहुँच सकते। वास्तव में, तुम्हारा पालनहार अति करुणामय, दयावान् है।
﴿وَالْخَيْلَ وَالْبِغَالَ وَالْحَمِيرَ لِتَرْكَبُوهَا وَزِينَةً ۚ وَيَخْلُقُ مَا لَا تَعْلَمُونَ﴾
तथा घोड़े, खच्चर और गधे पैदा किये, ताकि उनपर सवारी करो और (वे) शोभा (बनें) और (अल्लाह) ऐसी चीज़ों की उत्पत्ति करेगा, जिन्हें (अभी) तुम नहीं जानते हो[1]।
﴿وَعَلَى اللَّهِ قَصْدُ السَّبِيلِ وَمِنْهَا جَائِرٌ ۚ وَلَوْ شَاءَ لَهَدَاكُمْ أَجْمَعِينَ﴾
और अल्लाह पर, सीधी राह बताना है और उनमें से कुछ[1] टेढ़े हैं तथा यदि अल्लाह चाहता, तो तुमसभी को सीधी राह दिखा देता।
﴿هُوَ الَّذِي أَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً ۖ لَكُمْ مِنْهُ شَرَابٌ وَمِنْهُ شَجَرٌ فِيهِ تُسِيمُونَ﴾
वही है, जिसने आकाश से जल बरसाया, जिसमें से कुछ तुम पीते हो तथा कुछसे वृक्ष उपजते हैं, जिसमें तुम (पशुओं को) चराते हो।
﴿يُنْبِتُ لَكُمْ بِهِ الزَّرْعَ وَالزَّيْتُونَ وَالنَّخِيلَ وَالْأَعْنَابَ وَمِنْ كُلِّ الثَّمَرَاتِ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ﴾
और तुम्हारे लिए उससे खेती उपजाता है और ज़ैतून, खजूर, अंगूर और प्रत्येक प्रकार के फल। वास्तव में इस, में एक बड़ी निशानी है, उन लोगों के लिए, जो सोच-विचार करते हैं।
﴿وَسَخَّرَ لَكُمُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ ۖ وَالنُّجُومُ مُسَخَّرَاتٌ بِأَمْرِهِ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ﴾
और उसने तुम्हारे लिए रात्रि तथा दिवस को सेवा में लगा रखा है तथा सूर्य और चाँद को और (हाँ!) सितारे उसके आदेश के अधीन हैं। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ (लक्षण) हैं, उन लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं।
﴿وَمَا ذَرَأَ لَكُمْ فِي الْأَرْضِ مُخْتَلِفًا أَلْوَانُهُ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِقَوْمٍ يَذَّكَّرُونَ﴾
तथा जो तुम्हारे लिए धरती में विभिन्न रंगों की चीजें उत्पन्न की हैं, वास्तव में, इसमें एक बड़ी निशानी लक्षण) है, उन लोगों के लिए, जो शिक्षा ग्रहण करते हैं।
﴿وَهُوَ الَّذِي سَخَّرَ الْبَحْرَ لِتَأْكُلُوا مِنْهُ لَحْمًا طَرِيًّا وَتَسْتَخْرِجُوا مِنْهُ حِلْيَةً تَلْبَسُونَهَا وَتَرَى الْفُلْكَ مَوَاخِرَ فِيهِ وَلِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ﴾
और वही है, जिसने सागर को वश में कर रखा है, ताकि तुम उससे ताज़ा[1] मांस खाओ और उससे अलंकार[2] निकालो, जिसे पहनते हो तथा तुम नौकाओं को देखते हो कि सागर में (जल को) फाड़ती हुई चलती हैं और इसलिए ताकि तुम उस अल्लाह के अनुग्रह[3] की खोज करो और ताकि कृतज्ञ बनो।
﴿وَأَلْقَىٰ فِي الْأَرْضِ رَوَاسِيَ أَنْ تَمِيدَ بِكُمْ وَأَنْهَارًا وَسُبُلًا لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ﴾
और उसने धरती में पर्वत गाड़ दिये, ताकि तुम्हें लेकर डोलने न लगे तथा नदियाँ और राहें, ताकि तुम राह पाओ।
﴿وَعَلَامَاتٍ ۚ وَبِالنَّجْمِ هُمْ يَهْتَدُونَ﴾
तथा बहुत-से चिन्ह (बना दिये) और वे सितारों से (भी) राह[1] पाते हैं।
﴿أَفَمَنْ يَخْلُقُ كَمَنْ لَا يَخْلُقُ ۗ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ﴾
तो क्या, जो उत्पत्ति करता है, उसके समान है, जो उत्पत्ति नहीं करता? क्या तुम शिक्षा ग्रहण नहीं करते[1]?
﴿وَإِنْ تَعُدُّوا نِعْمَةَ اللَّهِ لَا تُحْصُوهَا ۗ إِنَّ اللَّهَ لَغَفُورٌ رَحِيمٌ﴾
और यदि तुम अल्लाह के पुरस्कारों की गणना करना चाहो, तो कभी नहीं कर सकते। वास्तव में, अल्लाह बड़ा क्षमा तथा दया करने वाला है।
﴿وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعْلِنُونَ﴾
तथा अल्लाह जानता है, जो तुम छुपाते हो और जो तुम व्यक्त करते हो।
﴿وَالَّذِينَ يَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ لَا يَخْلُقُونَ شَيْئًا وَهُمْ يُخْلَقُونَ﴾
और जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वे किसी चीज़ की उत्पत्ति नहीं कर सकते। जबकि वे स्वयं उत्पन्न किये जाते हैं।
﴿أَمْوَاتٌ غَيْرُ أَحْيَاءٍ ۖ وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ﴾
वे निर्जीव प्राणहीन हैं और (ये भी) नहीं जानते कि कब पुनः जीवित किये जायेंगे।
﴿إِلَٰهُكُمْ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۚ فَالَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ قُلُوبُهُمْ مُنْكِرَةٌ وَهُمْ مُسْتَكْبِرُونَ﴾
तुम्हारा पूज्य बस एक है, फिर जो लोग परलोक पर ईमान नहीं लाते, उनके दिल निवर्ती (विरोधी) हैं और वे अभिमानी हैं।
﴿لَا جَرَمَ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ ۚ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الْمُسْتَكْبِرِينَ﴾
जो कुछ वे छुपाते तथा व्यक्त करते हैं, निश्चय अल्लाह उसे जानता है। वास्तव में, वह अभिमानियों से प्रेम नहीं करता।
﴿وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ مَاذَا أَنْزَلَ رَبُّكُمْ ۙ قَالُوا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ﴾
और जब उनसे पूछा जाये कि तुम्हारे पालनहार ने क्या उतारा है[1]? तो कहते हैं कि पूर्वजों की कल्पित कथाएँ हैं।
﴿لِيَحْمِلُوا أَوْزَارَهُمْ كَامِلَةً يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۙ وَمِنْ أَوْزَارِ الَّذِينَ يُضِلُّونَهُمْ بِغَيْرِ عِلْمٍ ۗ أَلَا سَاءَ مَا يَزِرُونَ﴾
ताकि वे अपने (पापों का) पूरा बोझ प्रलय के दिन उठायें तथा कुछ उन लोगों का बोझ (भी), जिन्हें बिना ज्ञान के कुपथ कर रहे थे, सावधान! वे कितना बुरा बोझ उठायेंगे!
﴿قَدْ مَكَرَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَأَتَى اللَّهُ بُنْيَانَهُمْ مِنَ الْقَوَاعِدِ فَخَرَّ عَلَيْهِمُ السَّقْفُ مِنْ فَوْقِهِمْ وَأَتَاهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ﴾
इनसे पहले के लोग भी षड्यंत्र रचते रहे, तो अल्लाह ने उनके षड्यंत्र के भवन का उनमूलन कर दिया, फिर ऊपर से उनपर छत गिर पड़ी और उनपर ऐसी दिशा से यातना आ गई, जिसे वे सोच भी नहीं रहे थे।
﴿ثُمَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ يُخْزِيهِمْ وَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَائِيَ الَّذِينَ كُنْتُمْ تُشَاقُّونَ فِيهِمْ ۚ قَالَ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ إِنَّ الْخِزْيَ الْيَوْمَ وَالسُّوءَ عَلَى الْكَافِرِينَ﴾
फिर प्रलय के दिन उन्हें अपमानित करेगा और कहेगा कि मेरे वह साझी कहाँ हैं, जिनके लिए तुम झगड़ रहे थे? वे कहेंगेः जिन्हें ज्ञान दिया गया है कि वास्तव में, आज अपमान तथा बुराई (यातना) काफ़िरों के लिए है।
﴿الَّذِينَ تَتَوَفَّاهُمُ الْمَلَائِكَةُ ظَالِمِي أَنْفُسِهِمْ ۖ فَأَلْقَوُا السَّلَمَ مَا كُنَّا نَعْمَلُ مِنْ سُوءٍ ۚ بَلَىٰ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ﴾
जिनके प्राण फ़रिश्ते निकालते हैं, इस दशा में कि वे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले हैं, तो वे आज्ञाकारी बन जाते[1] हैं, (कहते हैं कि) हम कोई बुराई (शिर्क) नहीं कर रहे थे। क्यों नहीं? वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे कर्मों से भली-भाँति अवगत है।
﴿فَادْخُلُوا أَبْوَابَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۖ فَلَبِئْسَ مَثْوَى الْمُتَكَبِّرِينَ﴾
तो नरक के द्वारों में प्रवेश कर जाओ, उसमें सदावासी रहोगे, अतः क्या ही बुरा है अभिमानों का निवास स्थान!
﴿۞ وَقِيلَ لِلَّذِينَ اتَّقَوْا مَاذَا أَنْزَلَ رَبُّكُمْ ۚ قَالُوا خَيْرًا ۗ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا فِي هَٰذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ ۚ وَلَدَارُ الْآخِرَةِ خَيْرٌ ۚ وَلَنِعْمَ دَارُ الْمُتَّقِينَ﴾
और उनसे पूछा गया, जो अपने पालनहार से डरे कि तुम्हारे पालनहार ने क्या उतारा है? तो उन्होंने कहाः अच्छी चीज़ उतारी है। उनके लिए जिन्होंने इस लोक में सदाचार किये, बड़ी भलाई है और वास्तव में, परलोक का घर (स्वर्ग) अति उत्तम है और आज्ञाकारियों का आवास कितना अच्छा है!
﴿جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ لَهُمْ فِيهَا مَا يَشَاءُونَ ۚ كَذَٰلِكَ يَجْزِي اللَّهُ الْمُتَّقِينَ﴾
सदा रहने के स्वर्ग जिसमें प्रवेश करेंगे, जिनमें नहरें बहती होंगी, उनके लिए उसमें जो चाहेंगे (मिलेगा)। इसी प्रकार, अल्लाह आज्ञाकारियों को प्रतिफल (बदला) देता है।
﴿الَّذِينَ تَتَوَفَّاهُمُ الْمَلَائِكَةُ طَيِّبِينَ ۙ يَقُولُونَ سَلَامٌ عَلَيْكُمُ ادْخُلُوا الْجَنَّةَ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ﴾
जिनके प्राण फ़रिश्ते इस दशा में निकालते हैं कि वे स्वच्छ-पवित्र हैं, तो कहते हैं: "तुमपर शान्ति हो।" तुम अपने सुकर्मों के बदले स्वर्ग में प्रवेश कर जाओ।
﴿هَلْ يَنْظُرُونَ إِلَّا أَنْ تَأْتِيَهُمُ الْمَلَائِكَةُ أَوْ يَأْتِيَ أَمْرُ رَبِّكَ ۚ كَذَٰلِكَ فَعَلَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ اللَّهُ وَلَٰكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ﴾
क्या वे इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि उनके पास फ़रिश्ते[1] आ जायें अथवा आपके पालनहार का आदेश[2] आ पहुँचे? ऐसे ही, उनसे पूर्व के लोगों ने किया और अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे।
﴿فَأَصَابَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا عَمِلُوا وَحَاقَ بِهِمْ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ﴾
तो उनके कुकर्मों की बुराईयाँ[1] उनपर आ पड़ीं और उन्हें उसी (यातना) ने घेर लिया, जिसका वे परिहास कर रहे थे।
﴿وَقَالَ الَّذِينَ أَشْرَكُوا لَوْ شَاءَ اللَّهُ مَا عَبَدْنَا مِنْ دُونِهِ مِنْ شَيْءٍ نَحْنُ وَلَا آبَاؤُنَا وَلَا حَرَّمْنَا مِنْ دُونِهِ مِنْ شَيْءٍ ۚ كَذَٰلِكَ فَعَلَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚ فَهَلْ عَلَى الرُّسُلِ إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ﴾
और कहा, जिन लोगों ने शिर्क (मिश्रणवाद) कियाः यदि अल्लाह चाहता, तो हम उसके सिवा किसी चीज़ की इबादत (वंदना) न करते, न हम और न हमारे बाप-दादा और न उसके आदेश के बिना किसी चीज़ को ह़राम (वर्जित) करते। ऐसे ही, इनसे पूर्व वाले लोगों ने किया। तो रसूलों पर केवल खुले रूप से उपदेश पहुँचा देना है।
﴿وَلَقَدْ بَعَثْنَا فِي كُلِّ أُمَّةٍ رَسُولًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَاجْتَنِبُوا الطَّاغُوتَ ۖ فَمِنْهُمْ مَنْ هَدَى اللَّهُ وَمِنْهُمْ مَنْ حَقَّتْ عَلَيْهِ الضَّلَالَةُ ۚ فَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِينَ﴾
और हमने प्रत्येक समुदाय में एक रसूल भेजा कि अल्लाह की इबादत (वंदना) करो और ताग़ूत (असुर- अल्लाह के सिवा पूज्यों) से बचो, तो उनमें से कुछ को, अल्लाह ने सुपथ दिखा दिया और कुछ पर कुपथ सिध्द हो गया। तो धरती में चलो-फिरो, फिर देखो कि झुठलाने वालों का अन्त कैसा रहा?
﴿إِنْ تَحْرِصْ عَلَىٰ هُدَاهُمْ فَإِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ يُضِلُّ ۖ وَمَا لَهُمْ مِنْ نَاصِرِينَ﴾
(हे नबी!) आप ऐसे लोगों को सुपथ दिखाने पर लोलुप हों, तो भी अल्लाह उसे सुपथ नहीं दिखायेगा, जिसे कुपथ कर दे और न उनका कोई सहायक होगा।
﴿وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ ۙ لَا يَبْعَثُ اللَّهُ مَنْ يَمُوتُ ۚ بَلَىٰ وَعْدًا عَلَيْهِ حَقًّا وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ﴾
और उन (काफ़िरों) ने अल्लाह की भरपूर शपथ ली कि अल्लाह उसे पुनः जीवित नहीं करेगा, जो मर जाता है। क्यों नहीं? ये तो अल्लाह का अपने ऊपर सत्य वचन है, परन्तु अधिक्तर लोग नहीं जानते।
﴿لِيُبَيِّنَ لَهُمُ الَّذِي يَخْتَلِفُونَ فِيهِ وَلِيَعْلَمَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّهُمْ كَانُوا كَاذِبِينَ﴾
(ऐसा करना इसलिए आवश्यक है) ताकि अल्लाह उस तथ्य को उजागर कर दे, जिसमें[1] वे विभेद कर रहे थे और ताकि काफ़िर जान लें कि वही झूठे थे।
﴿إِنَّمَا قَوْلُنَا لِشَيْءٍ إِذَا أَرَدْنَاهُ أَنْ نَقُولَ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ﴾
हमारा कथन, जब हम किसी चीज़ को अस्तित्व प्रदान करने का निश्चय करें, तो इसके सिवा कुछ नहीं होता कि उसे आदेश दें कि "हो जा" और वह हो जाती है।
﴿وَالَّذِينَ هَاجَرُوا فِي اللَّهِ مِنْ بَعْدِ مَا ظُلِمُوا لَنُبَوِّئَنَّهُمْ فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً ۖ وَلَأَجْرُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ﴾
तथा जो लोग अल्लाह के लिए हिजरत (प्रस्थान) कर गये, अत्याचार सहने के पश्चात्, तो हम उन्हें संसार में अच्छा निवास्-स्थान देंगे और परलोक का प्रतिफल तो बहुत बड़ा है, यदि वे[1] जानते।
﴿الَّذِينَ صَبَرُوا وَعَلَىٰ رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ﴾
जिन लोगों ने धैर्य धारण किया तथा अपने पालनहार पर ही वे भरोसा करते हैं।
﴿وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ إِلَّا رِجَالًا نُوحِي إِلَيْهِمْ ۚ فَاسْأَلُوا أَهْلَ الذِّكْرِ إِنْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ﴾
और (हे नबी!) हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजे, वे सभी मानव-पुरुष थे। जिनकी ओर हम वह़्यी (प्रकाशना) करते रहे। तो तुम ज्ञानियों से पूछ लो, यदि (स्वयं) नहीं[1] जानते।
﴿بِالْبَيِّنَاتِ وَالزُّبُرِ ۗ وَأَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الذِّكْرَ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَيْهِمْ وَلَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُونَ﴾
प्रत्यक्ष (खुले) प्रमाणों तथा पुस्तकों के साथ (उन्हें भेजा) और आपकी ओर ये शिक्षा (क़ुर्आन) अवतरित की, ताकि आप उसे सर्वमानव के लिए उजागर कर दें, जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है, ताकि वे सोच-विचार करें।
﴿أَفَأَمِنَ الَّذِينَ مَكَرُوا السَّيِّئَاتِ أَنْ يَخْسِفَ اللَّهُ بِهِمُ الْأَرْضَ أَوْ يَأْتِيَهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ﴾
तो क्या वे निर्भय हो गये हैं, जिन्होंने बुरे षड्यंत्र रचे हैं कि अल्लाह उन्हें धरती में धंसा दे? अथवा उनपर यातना ऐसी दिशा से आ जाये, जिसे वे सोचते भी न हों?
﴿أَوْ يَأْخُذَهُمْ فِي تَقَلُّبِهِمْ فَمَا هُمْ بِمُعْجِزِينَ﴾
या उन्हें चलते-फिरते पकड़ ले, तो वे (अल्लाह को) विवश करने वाले नहीं हैं।
﴿أَوْ يَأْخُذَهُمْ عَلَىٰ تَخَوُّفٍ فَإِنَّ رَبَّكُمْ لَرَءُوفٌ رَحِيمٌ﴾
अथवा उन्हें भय की दशा में पकड़[1] ले? निश्चय तुम्हारा पालनहार अति करुणामय दयावान् है।
﴿أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَىٰ مَا خَلَقَ اللَّهُ مِنْ شَيْءٍ يَتَفَيَّأُ ظِلَالُهُ عَنِ الْيَمِينِ وَالشَّمَائِلِ سُجَّدًا لِلَّهِ وَهُمْ دَاخِرُونَ﴾
क्या अल्लाह की उत्पन्न की हुई किसी चीज़ को उन्होंने नहीं देखा? जिसकी छाया दायें तथा बायें झुकती है, अल्लाह को सज्दा करते हुए? और वे सर्व विनयशील हैं।
﴿وَلِلَّهِ يَسْجُدُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ مِنْ دَابَّةٍ وَالْمَلَائِكَةُ وَهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ﴾
तथा अल्लाह ही को सज्दा करते हैं, जो आकाशों में तथा धरती में चर (जीव) तथा फ़रिश्ते हैं और वे अहंकार नहीं करते।
﴿يَخَافُونَ رَبَّهُمْ مِنْ فَوْقِهِمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ ۩﴾
वे[1] अपने पालनहार से डरते हैं, जो उनके ऊपर है और वही करते हैं, जो आदेश दिये जाते हैं।
﴿۞ وَقَالَ اللَّهُ لَا تَتَّخِذُوا إِلَٰهَيْنِ اثْنَيْنِ ۖ إِنَّمَا هُوَ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۖ فَإِيَّايَ فَارْهَبُونِ﴾
और अल्लाह ने कहाः दो पूज्य न बनाओ, वही अकेला पूज्य है। अतः तुम मुझी से डरो।
﴿وَلَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَهُ الدِّينُ وَاصِبًا ۚ أَفَغَيْرَ اللَّهِ تَتَّقُونَ﴾
और उसी का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और उसी की वंदना स्थायी है, तो क्या तुम अल्लाह के सिवा दूसरे से डरते हो?
﴿وَمَا بِكُمْ مِنْ نِعْمَةٍ فَمِنَ اللَّهِ ۖ ثُمَّ إِذَا مَسَّكُمُ الضُّرُّ فَإِلَيْهِ تَجْأَرُونَ﴾
तुम्हें, जोभी सुख-सुविधा प्राप्त है, वह अल्लाह ही की ओर से है। फिर जब तुम्हें दुःख पहुँचता है, तो उसी को पुकारते हो।
﴿ثُمَّ إِذَا كَشَفَ الضُّرَّ عَنْكُمْ إِذَا فَرِيقٌ مِنْكُمْ بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُونَ﴾
फिर जब तुमसे दुःख दूर कर देता है, तो तुम्हारा एक समुदाय अपने पालनहार का साझी बनाने लगता है।
﴿لِيَكْفُرُوا بِمَا آتَيْنَاهُمْ ۚ فَتَمَتَّعُوا ۖ فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ﴾
ताकि हमने उन्हें, जो कुछ प्रदान किया है, उसके प्रति कृतघ्न हों, तो आनन्द ले लो, तुम्हें शीघ्र ही ज्ञान हो जायेगा।
﴿وَيَجْعَلُونَ لِمَا لَا يَعْلَمُونَ نَصِيبًا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ ۗ تَاللَّهِ لَتُسْأَلُنَّ عَمَّا كُنْتُمْ تَفْتَرُونَ﴾
और वे जिन्हें जानते[1] तक नहीं, उनका एक भाग, उसमें से बनाते हैं, जो जीविका हमने उन्हें दी है। तो अल्लाह की शपथ! तुमसे अवश्य पूछा जायेगा, उसके विषय में, जो तुम झूठी बातें बना रहे थे?
﴿وَيَجْعَلُونَ لِلَّهِ الْبَنَاتِ سُبْحَانَهُ ۙ وَلَهُمْ مَا يَشْتَهُونَ﴾
और वे अल्लाह के लिए पुत्रियाँ बनाते[1] हैं, वह पवित्र है! और उनके लिए वह[2] है, जो वे स्वयं चाहते हों?
﴿وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُمْ بِالْأُنْثَىٰ ظَلَّ وَجْهُهُ مُسْوَدًّا وَهُوَ كَظِيمٌ﴾
और जब उनमें से किसी को पुत्री (के जन्म) की शुभसूचना दी जाये, तो उसका मुख काला हो जाता है और वह शोकपूर्ण हो जाता है।
﴿يَتَوَارَىٰ مِنَ الْقَوْمِ مِنْ سُوءِ مَا بُشِّرَ بِهِ ۚ أَيُمْسِكُهُ عَلَىٰ هُونٍ أَمْ يَدُسُّهُ فِي التُّرَابِ ۗ أَلَا سَاءَ مَا يَحْكُمُونَ﴾
और लोगों से छुपा फिरता है, उस बुरी सूचना के कारण, जो उसे दी गयी है। (सोचता है कि) क्या[1] उसे अपमान के साथ रोक ले अथवा भूमि में गाड़ दे? देखो! वे कितना बुरा निर्णय करते हैं।
﴿لِلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ مَثَلُ السَّوْءِ ۖ وَلِلَّهِ الْمَثَلُ الْأَعْلَىٰ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ﴾
उन्हीं के लिए जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं रखते अपगुण है और अल्लाह के लिए सदगुण हैं तथा वह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
﴿وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللَّهُ النَّاسَ بِظُلْمِهِمْ مَا تَرَكَ عَلَيْهَا مِنْ دَابَّةٍ وَلَٰكِنْ يُؤَخِّرُهُمْ إِلَىٰ أَجَلٍ مُسَمًّى ۖ فَإِذَا جَاءَ أَجَلُهُمْ لَا يَسْتَأْخِرُونَ سَاعَةً ۖ وَلَا يَسْتَقْدِمُونَ﴾
और यदि अल्लाह, लोगों को उनके अत्याचार[1] पर (तत्क्षण) धरने लगे, तो धरती में किसी जीव को न छोड़े। परन्तु वह एक निर्धारित अवधि तक निलम्बित करता[2] है और जब उनकी अवधि आ जायेगी, तो एक क्षण न पीछे होंगे, न पहले।
﴿وَيَجْعَلُونَ لِلَّهِ مَا يَكْرَهُونَ وَتَصِفُ أَلْسِنَتُهُمُ الْكَذِبَ أَنَّ لَهُمُ الْحُسْنَىٰ ۖ لَا جَرَمَ أَنَّ لَهُمُ النَّارَ وَأَنَّهُمْ مُفْرَطُونَ﴾
वह अल्लाह के लिए उसे[1] बनाते हैं, जिसे स्वयं अप्रिय समझते हैं तथा उनकी ज़ुबानें झूठ बोलती हैं कि उन्हीं के लिए भलाई है। निश्चय उन्हीं के लिए नरक है और वही सबसे पहले (नरक में) झोंके जायेंगे।
﴿تَاللَّهِ لَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَىٰ أُمَمٍ مِنْ قَبْلِكَ فَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَهُوَ وَلِيُّهُمُ الْيَوْمَ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ﴾
अल्लाह की शपथ! (हे नबी!) आपसे पहले हमने बहुत-से समुदायों की ओर रसूल भेजे। तो उनके लिए शैतान ने उनके कुकर्मों को सुसज्जित बना दिया। अतः वही आज उनका सहायक है और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
﴿وَمَا أَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ إِلَّا لِتُبَيِّنَ لَهُمُ الَّذِي اخْتَلَفُوا فِيهِ ۙ وَهُدًى وَرَحْمَةً لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ﴾
और हमने आपपर ये पुस्तक (क़ुर्आन) इसी लिए उतारी है, ताकि आप उनके लिए उसे उजागर कर दें, जिसमें वे विभेद कर रहे हैं तथा मार्गदर्शन और दया है, उन लोगों के लिए, जो ईमान (विश्वास) रखते हैं।
﴿وَاللَّهُ أَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِقَوْمٍ يَسْمَعُونَ﴾
और अल्लाह ने ही आकाश से जल बरसाया, फिर उसने निर्जीव धरती को जीवित कर दिया। निश्चय इसमें उन लोगों के लिए एक निशानी है, जो सुनते हैं।
﴿وَإِنَّ لَكُمْ فِي الْأَنْعَامِ لَعِبْرَةً ۖ نُسْقِيكُمْ مِمَّا فِي بُطُونِهِ مِنْ بَيْنِ فَرْثٍ وَدَمٍ لَبَنًا خَالِصًا سَائِغًا لِلشَّارِبِينَ﴾
तथा वास्तव में, तुम्हारे लिए पशुओं में एक शिक्षा है। हम तुम्हें उससे, जो उसके भीतर है, गोबर तथा रक्त के बीच से शुध्द दूध पिलाते हैं, जो पीने वालों के लिए रुचिकर होता है।
﴿وَمِنْ ثَمَرَاتِ النَّخِيلِ وَالْأَعْنَابِ تَتَّخِذُونَ مِنْهُ سَكَرًا وَرِزْقًا حَسَنًا ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ﴾
तथा खजूरों और अंगूरों के फलों से, जिससे तुम मदिरा बना लेते हो तथा उत्तम जीविका भी, वास्तव में, इसमें एक निशानी (लक्षण) है, उन लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं।
﴿وَأَوْحَىٰ رَبُّكَ إِلَى النَّحْلِ أَنِ اتَّخِذِي مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا وَمِنَ الشَّجَرِ وَمِمَّا يَعْرِشُونَ﴾
और हमने मधुमक्खी को प्रेरणा दी कि पर्वतों में घर (छत्ते) बना तथा वृक्षों में और लोगों की बनायी छतों में।
﴿ثُمَّ كُلِي مِنْ كُلِّ الثَّمَرَاتِ فَاسْلُكِي سُبُلَ رَبِّكِ ذُلُلًا ۚ يَخْرُجُ مِنْ بُطُونِهَا شَرَابٌ مُخْتَلِفٌ أَلْوَانُهُ فِيهِ شِفَاءٌ لِلنَّاسِ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ﴾
फिर प्रत्येक फलों का रस चूस और अपने पालनहार की सरल राहों पर चलती रह। उसके भीतर से एक पेय निकलता है, जो विभिन्न रंगों का होता है, जिसमें लोगों के लिए आरोग्य है। वास्तव में, इसमें एक निशानी (लक्षण) है, उन लोगों के लिए, जो सोच-विचार करते हैं।
﴿وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ ثُمَّ يَتَوَفَّاكُمْ ۚ وَمِنْكُمْ مَنْ يُرَدُّ إِلَىٰ أَرْذَلِ الْعُمُرِ لِكَيْ لَا يَعْلَمَ بَعْدَ عِلْمٍ شَيْئًا ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ قَدِيرٌ﴾
और अल्लाह ही ने तुम्हारी उत्पत्ति की है, फिर तुम्हें मौत देता है और तुममें से कुछको अबोध आयु तक पहुँचा दिया जाता है, ताकि जानने के पश्चात् कुछ न जाने। वास्तव में, अल्लाह सर्वज्ञ, सर्व सामर्थ्यवान्[1] है।
﴿وَاللَّهُ فَضَّلَ بَعْضَكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ فِي الرِّزْقِ ۚ فَمَا الَّذِينَ فُضِّلُوا بِرَادِّي رِزْقِهِمْ عَلَىٰ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَهُمْ فِيهِ سَوَاءٌ ۚ أَفَبِنِعْمَةِ اللَّهِ يَجْحَدُونَ﴾
और अल्लाह ने तुममें से कुछ को, कुछ पर जीविका में प्रधानता दी है, तो जिन्हें प्रधानता दी गयी है, वे अपनी जीविका अपने दासों की ओर फेरने वाले नहीं कि वे उसमें बराबर हो जायें, तो क्या वे अल्लाह के उपकारों को नहीं मानते हैं[1]?
﴿وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُمْ مِنْ أَنْفُسِكُمْ أَزْوَاجًا وَجَعَلَ لَكُمْ مِنْ أَزْوَاجِكُمْ بَنِينَ وَحَفَدَةً وَرَزَقَكُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ ۚ أَفَبِالْبَاطِلِ يُؤْمِنُونَ وَبِنِعْمَتِ اللَّهِ هُمْ يَكْفُرُونَ﴾
और अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हीं में से पत्नियाँ बनायीं और तुम्हारे लिए तुम्हारी पत्नियों से पुत्र तथा पौत्र बनाये और तुम्हें स्वच्छ चीज़ों से जीविका प्रदान की। तो क्या वे असत्य पर विश्वास रखते हैं और अल्लाह के पुरस्कारों के प्रति अविश्वास रखते हैं?
﴿وَيَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَمْلِكُ لَهُمْ رِزْقًا مِنَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ شَيْئًا وَلَا يَسْتَطِيعُونَ﴾
और अल्लाह के सिवा उनकी वंदना करते हैं, जो उनके लिए आकाशों तथा धरती से कुछ भी जीविका देने का अधिकार नहीं रखते और न इसका सामर्थ्य रखते हैं।
﴿فَلَا تَضْرِبُوا لِلَّهِ الْأَمْثَالَ ۚ إِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ وَأَنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ﴾
और अल्लाह के लिए उदाहरण न दो। वास्तव में, अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते[1]।
﴿۞ ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا عَبْدًا مَمْلُوكًا لَا يَقْدِرُ عَلَىٰ شَيْءٍ وَمَنْ رَزَقْنَاهُ مِنَّا رِزْقًا حَسَنًا فَهُوَ يُنْفِقُ مِنْهُ سِرًّا وَجَهْرًا ۖ هَلْ يَسْتَوُونَ ۚ الْحَمْدُ لِلَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ﴾
अल्लाह ने एक उदाहरण[1] दिया है; एक प्राधीन दास है, जो किसी चीज़ का अधिकार नहीं रखता और दूसरा (स्वाधीन) व्यक्ति है, जिसे हमने अपनी ओर से उत्तम जीविका प्रदान की है और वह उसमें छुपे और खुले व्यय करता है। क्या वे दोनों समान हो जायेंगे? सब प्रशंसा अल्लाह[2] के लिए है। बल्कि अधिक्तर लोग (ये बात) नहीं जानते।
﴿وَضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا رَجُلَيْنِ أَحَدُهُمَا أَبْكَمُ لَا يَقْدِرُ عَلَىٰ شَيْءٍ وَهُوَ كَلٌّ عَلَىٰ مَوْلَاهُ أَيْنَمَا يُوَجِّهْهُ لَا يَأْتِ بِخَيْرٍ ۖ هَلْ يَسْتَوِي هُوَ وَمَنْ يَأْمُرُ بِالْعَدْلِ ۙ وَهُوَ عَلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ﴾
तथा अल्लाह ने दो व्यक्तियों का उदाहरण दिया है; दोनों में से एक गूँगा है, वह किसी चीज़ का अधिकार नहीं रखता, वह अपने स्वामी पर बोझ है, वह उसे जहाँ भेजता है, कोई भलाई नहीं लाता। तो क्या वह और जो न्याय का आदेश देता हो और स्वयं सीधी[1] राह पर हो, बराबर हो जायेंगे?
﴿وَلِلَّهِ غَيْبُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَمَا أَمْرُ السَّاعَةِ إِلَّا كَلَمْحِ الْبَصَرِ أَوْ هُوَ أَقْرَبُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ﴾
और अल्लाह ही को आकाशों तथा धरती के परोक्ष[1] का ज्ञान है और प्रलय (क़्यामत) का विषय तो बस पलक झपकने जैसा[2] होगा अथवा उससे भी अधिक शीघ्र। वास्तव में, अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
﴿وَاللَّهُ أَخْرَجَكُمْ مِنْ بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ لَا تَعْلَمُونَ شَيْئًا وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۙ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ﴾
और अल्लाह ही ने तुम्हें तुम्हारी माताओं के गर्भों से निकाला, इस दशा में कि तुम कुछ नहीं जानते थे और तुम्हारे कान और आँख तथा दिल बनाये, ताकि तुम (उसका) उपकार मानो।
﴿أَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ مُسَخَّرَاتٍ فِي جَوِّ السَّمَاءِ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا اللَّهُ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ﴾
क्या वे पक्षियों को नहीं देखते कि वे अंतरिक्ष में कैसे वशीभूत हैं? उन्हें अल्लाह ही थामता[1] है। वास्तव में, इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।
﴿وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُمْ مِنْ بُيُوتِكُمْ سَكَنًا وَجَعَلَ لَكُمْ مِنْ جُلُودِ الْأَنْعَامِ بُيُوتًا تَسْتَخِفُّونَهَا يَوْمَ ظَعْنِكُمْ وَيَوْمَ إِقَامَتِكُمْ ۙ وَمِنْ أَصْوَافِهَا وَأَوْبَارِهَا وَأَشْعَارِهَا أَثَاثًا وَمَتَاعًا إِلَىٰ حِينٍ﴾
और अल्लाह ही ने तुम्हारे घरों को निवास स्थान बनाया और पशुओं की खालों से तुम्हारे लिए ऐसे घर[1] बनाये, जिन्हें तुम अपनी यात्रा तथा अपने विराम के दिन हल्का (अल्पभार) पाते हो और उनकी ऊन और रोम तथा बालों से उपक्रण और लाभ के सामान, जीवन की निश्चित अवधि तक के लिए (बनाये)।
﴿وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُمْ مِمَّا خَلَقَ ظِلَالًا وَجَعَلَ لَكُمْ مِنَ الْجِبَالِ أَكْنَانًا وَجَعَلَ لَكُمْ سَرَابِيلَ تَقِيكُمُ الْحَرَّ وَسَرَابِيلَ تَقِيكُمْ بَأْسَكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُتِمُّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تُسْلِمُونَ﴾
और अल्लाह ही ने तुम्हार लिए उस चीज़ में से, जो उत्पन्न की है, छाया बनायी है और तुम्हारे लिए पर्वतों में गुफाएँ बनायी हैं और तुम्हारे लिए ऐसे वस्त्र बनाये हैं, जो तुम्हे धूप से बचायें[1]। इसी प्रकार, वह तुमपर अपना उपकार पूरा करता है, ताकि तुम आज्ञाकारी बनो।
﴿فَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلَاغُ الْمُبِينُ﴾
फिर यदि वे विमुख हों, तो आपपर बस प्रत्यक्ष (खुला) उपदेश पहुँचा देना है।
﴿يَعْرِفُونَ نِعْمَتَ اللَّهِ ثُمَّ يُنْكِرُونَهَا وَأَكْثَرُهُمُ الْكَافِرُونَ﴾
वे अल्लाह के उपकार पहचानते हैं, फिर उसका इन्कार करते हैं और उनमें अधिक्तर कृतघ्न हैं।
﴿وَيَوْمَ نَبْعَثُ مِنْ كُلِّ أُمَّةٍ شَهِيدًا ثُمَّ لَا يُؤْذَنُ لِلَّذِينَ كَفَرُوا وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ﴾
और जिस[1] दिन, हम प्रत्येक समुदाय से एक साक्षी (गवाह) खड़ा[2] करेंगे, फिर काफ़िरों को बात करने की अनुमति नहीं दी जायेगी और न उनसे क्षमा याचना की माँग की जायेगी।
﴿وَإِذَا رَأَى الَّذِينَ ظَلَمُوا الْعَذَابَ فَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمْ وَلَا هُمْ يُنْظَرُونَ﴾
और जब अत्याचारी यातना देखेंगे, उनकी यातना कुछ कम नहीं की जायेगी और न उन्हें अवकाश दिया[1] जायेगा।
﴿وَإِذَا رَأَى الَّذِينَ أَشْرَكُوا شُرَكَاءَهُمْ قَالُوا رَبَّنَا هَٰؤُلَاءِ شُرَكَاؤُنَا الَّذِينَ كُنَّا نَدْعُو مِنْ دُونِكَ ۖ فَأَلْقَوْا إِلَيْهِمُ الْقَوْلَ إِنَّكُمْ لَكَاذِبُونَ﴾
और जब मुश्रिक अपने (बनाये हुए) साझियों को देखेंगे, तो कहेंगेः हे हमारे पालनहार! यही हमारे साझी हैं, जिन्हें हम, तुझे छोड़कर पुकार रहे थे। तो वे (पूज्य) बोलेंगे कि निश्चय तुम सब मिथ्यावादी (झूठे) हो।
﴿وَأَلْقَوْا إِلَى اللَّهِ يَوْمَئِذٍ السَّلَمَ ۖ وَضَلَّ عَنْهُمْ مَا كَانُوا يَفْتَرُونَ﴾
उस दिन, वे अल्लाह के आगे झुक जायेंगे और उनसे खो जायेँगी, जो मिथ्या बातें वे बनाते थे।
﴿الَّذِينَ كَفَرُوا وَصَدُّوا عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ زِدْنَاهُمْ عَذَابًا فَوْقَ الْعَذَابِ بِمَا كَانُوا يُفْسِدُونَ﴾
जो लोग काफिर हो गये और (दूसरों को भी) अल्लाह की डगर (इस्लाम) से रोक दिये, उन्हें हम यातना पर यातना देंगे, उस उपद्रव के बदले, जो वे कर रहे थे।
﴿وَيَوْمَ نَبْعَثُ فِي كُلِّ أُمَّةٍ شَهِيدًا عَلَيْهِمْ مِنْ أَنْفُسِهِمْ ۖ وَجِئْنَا بِكَ شَهِيدًا عَلَىٰ هَٰؤُلَاءِ ۚ وَنَزَّلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ تِبْيَانًا لِكُلِّ شَيْءٍ وَهُدًى وَرَحْمَةً وَبُشْرَىٰ لِلْمُسْلِمِينَ﴾
और जिस दिन, हम प्रत्येक समुदाय से एक साक्षी उनके विरुध्द उन्हीं में से खड़ा कर देंगे और (हे नबी!) हम आपको उनपर साक्षी (गवाह) बनायेंगे[1] और हमने आपपर ये पुस्तक (क़ुर्आन) अवतरित की है, जो प्रत्येक विषय का खुला विवरण है, मार्गदर्शन दया तथा शुभ सूचना है आज्ञाकारियों के लिए।
﴿۞ إِنَّ اللَّهَ يَأْمُرُ بِالْعَدْلِ وَالْإِحْسَانِ وَإِيتَاءِ ذِي الْقُرْبَىٰ وَيَنْهَىٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ وَالْبَغْيِ ۚ يَعِظُكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ﴾
वस्तुतः, अल्लाह तुम्हें न्याय, उपकार और समीपवर्तियों को देने का आदेश दे रहा है और निर्लज्जा, बुराई और विद्रोह से रोक रहा है और तुम्हें सिखा रहा है, ताकि तुम शिक्षा ग्रहण करो।
﴿وَأَوْفُوا بِعَهْدِ اللَّهِ إِذَا عَاهَدْتُمْ وَلَا تَنْقُضُوا الْأَيْمَانَ بَعْدَ تَوْكِيدِهَا وَقَدْ جَعَلْتُمُ اللَّهَ عَلَيْكُمْ كَفِيلًا ۚ إِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا تَفْعَلُونَ﴾
और जब अल्लाह से कोई वचन करो, तो उसे पूरा करो और अपनी शपथों को सुदृढ़ करने के पश्चात् भंग न करो, जब तुमने अल्लाह को अपने ऊपर गवाह बनाया है। निश्चय अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उसे जानता है।
﴿وَلَا تَكُونُوا كَالَّتِي نَقَضَتْ غَزْلَهَا مِنْ بَعْدِ قُوَّةٍ أَنْكَاثًا تَتَّخِذُونَ أَيْمَانَكُمْ دَخَلًا بَيْنَكُمْ أَنْ تَكُونَ أُمَّةٌ هِيَ أَرْبَىٰ مِنْ أُمَّةٍ ۚ إِنَّمَا يَبْلُوكُمُ اللَّهُ بِهِ ۚ وَلَيُبَيِّنَنَّ لَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ مَا كُنْتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ﴾
और तुम्हारी दशा उस स्त्री जैसी न हो जाये, जिसने अपना सूत कातने के पश्चात् उधेड़ दिया। तुम अपनी शपथों को आपस में विश्वासघात का साधन बनाते हो, ताकि एक समुदाय दूसरे समुदाय से अधिक लाभ प्राप्त करे। अल्लाह इस[1] (वचन) के द्वारा तुम्हारी परीक्षा ले रहा है और प्रलय के दिन तुम्हारे लिए अवश्य उसे उजागर कर देगा, जिसमें तुम विभेद कर रहे थे।
﴿وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَٰكِنْ يُضِلُّ مَنْ يَشَاءُ وَيَهْدِي مَنْ يَشَاءُ ۚ وَلَتُسْأَلُنَّ عَمَّا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ﴾
और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें एक समुदाय बना देता। परन्तु वह जिसे चाहता है, कुपथ कर देता है और जिसे चाहता है, सुपथ दर्शा देता है और तुमसे उसके बारे में अवश्य पूछा जायेगा, जो तुम कर रहे थे।
﴿وَلَا تَتَّخِذُوا أَيْمَانَكُمْ دَخَلًا بَيْنَكُمْ فَتَزِلَّ قَدَمٌ بَعْدَ ثُبُوتِهَا وَتَذُوقُوا السُّوءَ بِمَا صَدَدْتُمْ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ ۖ وَلَكُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ﴾
और अपनी शपथों को आपस में विश्वासघात का साधन न बनाओ, ऐसा न हो कि कोई पग अपने स्थिर (दृढ़) होने के पश्चात् (ईमान से) फिसल[1] जाये और तुम उसके बदले बुरा परिणाम चखो कि तुमने अल्लाह की राह से रोका है और तुम्हारे लिए बड़ी यातना हो।
﴿وَلَا تَشْتَرُوا بِعَهْدِ اللَّهِ ثَمَنًا قَلِيلًا ۚ إِنَّمَا عِنْدَ اللَّهِ هُوَ خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ﴾
और अल्लाह से किये हुए वचन को तनिक मूल्य के बदले न बेचो[1]। वास्तव में, जो अल्लाह के पास है, वही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो।
﴿مَا عِنْدَكُمْ يَنْفَدُ ۖ وَمَا عِنْدَ اللَّهِ بَاقٍ ۗ وَلَنَجْزِيَنَّ الَّذِينَ صَبَرُوا أَجْرَهُمْ بِأَحْسَنِ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾
जो तुम्हारे पास है, वह व्यय (ख़र्च) हो जायेगा और जो अल्लाह के पास है, वह शेष रह जाने वाला है और हम, जो धैर्य धारण करते हैं, उन्हें अवश्य उनका पारिश्रमिक (बदला) उनके उत्तम कर्मों के अनुसार प्रदान करेंगे।
﴿مَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِنْ ذَكَرٍ أَوْ أُنْثَىٰ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَنُحْيِيَنَّهُ حَيَاةً طَيِّبَةً ۖ وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَجْرَهُمْ بِأَحْسَنِ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾
जो भी सदाचार करेगा, वह नर हो अथवा नारी और ईमान वाला हो, तो हम उसे स्वच्छ जीवन व्यतीत करायेंगे और उन्हें उनका पारिश्रमिक उनके उत्तम कर्मों के अनुसार अवश्य प्रदान करेंगे।
﴿فَإِذَا قَرَأْتَ الْقُرْآنَ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ﴾
तो (हे नबी!) जब आप क़ुर्आन का अध्ययन करें, तो धिक्कारे हुए शैतान से अललाह की शरण[1] माँग लिया करें।
﴿إِنَّهُ لَيْسَ لَهُ سُلْطَانٌ عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَعَلَىٰ رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ﴾
वस्तुतः, उसका वश उनपर नहीं है, जो ईमान लाये हैं और अपने पालनहार ही पर भरोसा करते हैं।
﴿إِنَّمَا سُلْطَانُهُ عَلَى الَّذِينَ يَتَوَلَّوْنَهُ وَالَّذِينَ هُمْ بِهِ مُشْرِكُونَ﴾
उसका वश तो केवल उनपर चलता है, जो उसे अपना संरक्षक बनाते हैं और जो मिश्रणवादी (मुश्रिक) हैं।
﴿وَإِذَا بَدَّلْنَا آيَةً مَكَانَ آيَةٍ ۙ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُنَزِّلُ قَالُوا إِنَّمَا أَنْتَ مُفْتَرٍ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ﴾
और जब हम किसी आयत (विधान) के स्थान पर कोई आयत बदल देते हैं और अल्लाह ही अधिक जानता है उसे, जिसे वह उतारता है, तो कहते हैं कि आप तो केवल घड़ लेते हैं, बल्कि उनमें अधिक्तर जानते ही नहीं।
﴿قُلْ نَزَّلَهُ رُوحُ الْقُدُسِ مِنْ رَبِّكَ بِالْحَقِّ لِيُثَبِّتَ الَّذِينَ آمَنُوا وَهُدًى وَبُشْرَىٰ لِلْمُسْلِمِينَ﴾
आप कह दें कि इसे (रूह़ुल कुदुस)[1] ने आपके पालनहार की ओर से सत्य के साथ क्रमशः उतारा है, ताकि उन्हें सुदृढ़ कर दे, जो ईमान लाये हैं तथा मार्गदर्शन और शुभ सूचना है, आज्ञाकारियों के लिए।
﴿وَلَقَدْ نَعْلَمُ أَنَّهُمْ يَقُولُونَ إِنَّمَا يُعَلِّمُهُ بَشَرٌ ۗ لِسَانُ الَّذِي يُلْحِدُونَ إِلَيْهِ أَعْجَمِيٌّ وَهَٰذَا لِسَانٌ عَرَبِيٌّ مُبِينٌ﴾
तथा हम जानते हैं कि वे (काफ़िर) कहते हैं कि उसे (नबी को) कोई मनुष्य सिखा रहा[1] है। जबकी उसकी भाषा जिसकी ओर संकेत करते हैं, विदेशी है और ये[2] स्पष्ट अरबी भाषा है।
﴿إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ لَا يَهْدِيهِمُ اللَّهُ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ﴾
वास्तव में, जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते, उन्हें अल्लाह सुपथ नहीं दर्शाता और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
﴿إِنَّمَا يَفْتَرِي الْكَذِبَ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْكَاذِبُونَ﴾
झूठ केवल वही घड़ते हैं, जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते और वही मिथ्यावादी (झूठे) हैं।
﴿مَنْ كَفَرَ بِاللَّهِ مِنْ بَعْدِ إِيمَانِهِ إِلَّا مَنْ أُكْرِهَ وَقَلْبُهُ مُطْمَئِنٌّ بِالْإِيمَانِ وَلَٰكِنْ مَنْ شَرَحَ بِالْكُفْرِ صَدْرًا فَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ مِنَ اللَّهِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ﴾
जिसने अल्लाह के साथ कुफ़्र किया, अपने ईमान लाने के पश्चात्, परन्तु जो बाध्य कर दिया गया हो, इस दशा में कि उसका दिल ईमान से संतुष्ट हो, (उसके लिए क्षमा है)। परन्तु जिसने कुफ़्र के साथ सीना खोल दिया[1] हो, तो उन्हीं पर अल्लाह का प्रकोप है और उन्हीं के लिए महा यातना है।
﴿ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمُ اسْتَحَبُّوا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا عَلَى الْآخِرَةِ وَأَنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ﴾
ये इसलिए कि उन्होंने सांसारिक जीवन को प्रलोक पर प्राथमिकता दी है और वास्तव में अल्लाह, काफ़िरों को सुपथ नहीं दिखाता।
﴿أُولَٰئِكَ الَّذِينَ طَبَعَ اللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ وَسَمْعِهِمْ وَأَبْصَارِهِمْ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْغَافِلُونَ﴾
वही लोग हैं, जिनके दिलों, कानों और आँखों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी है तथा यही लोग अचेत हैं।
﴿لَا جَرَمَ أَنَّهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْخَاسِرُونَ﴾
निश्चय वही लोग, प्रलोक में क्षतिग्रस्त होने वाले हैं।
﴿ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ هَاجَرُوا مِنْ بَعْدِ مَا فُتِنُوا ثُمَّ جَاهَدُوا وَصَبَرُوا إِنَّ رَبَّكَ مِنْ بَعْدِهَا لَغَفُورٌ رَحِيمٌ﴾
फिर वास्तव में, आपका पालनहार उन लोगों[1] के लिए जिन्होंने हिजरत (प्रस्थान) की और उसके पश्चात् परीक्षा में डाले गये, फिर जिहाद किया और सहनशील रहे, वास्तव में, आपका पालनहार इस (परीक्षा) के पश्चात् बड़ा क्षमाशील, दयावान् है।
﴿۞ يَوْمَ تَأْتِي كُلُّ نَفْسٍ تُجَادِلُ عَنْ نَفْسِهَا وَتُوَفَّىٰ كُلُّ نَفْسٍ مَا عَمِلَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ﴾
जिस दिन प्रत्येक प्राणी को अपने बचाव की चिन्ता होगी और प्रत्येक प्राणी को उसके कर्मों का पूरा बदला दिया जायेगा और उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
﴿وَضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا قَرْيَةً كَانَتْ آمِنَةً مُطْمَئِنَّةً يَأْتِيهَا رِزْقُهَا رَغَدًا مِنْ كُلِّ مَكَانٍ فَكَفَرَتْ بِأَنْعُمِ اللَّهِ فَأَذَاقَهَا اللَّهُ لِبَاسَ الْجُوعِ وَالْخَوْفِ بِمَا كَانُوا يَصْنَعُونَ﴾
अल्लाह ने एक बस्ती का उदाहरण दिया है, जो शान्त संतुष्ट थी, उसकी जीविका प्रत्येक स्थान से प्राचूर्य के साथ पहुँच रही थी, तो उसने अल्लाह के उपकारों के साथ कुफ़्र किया। तब अल्ल्लाह ने उसे भूख और भय का वस्त्र चखा[1] दिया, उसके बदले जो वह[2] कर रहे थे।
﴿وَلَقَدْ جَاءَهُمْ رَسُولٌ مِنْهُمْ فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمُ الْعَذَابُ وَهُمْ ظَالِمُونَ﴾
और उनके पास एक[1] रसूल उन्हीं में से आया, तो उन्होंने उसे झुठला दिया। अतः उन्हें यातना ने पकड़ लिया और वे अत्याचारी थे।
﴿فَكُلُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ حَلَالًا طَيِّبًا وَاشْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ﴾
अतः उसमें से खाओ, जो अल्लाह ने तुम्हें ह़लाल (वैध) स्वच्छ जीविका प्रदान की है और अल्लाह का उपकार मानो, यदि तुम उसी की इबादत (वंदना) करते हो।
﴿إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنْزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ ۖ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلَا عَادٍ فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾
जो कुछ उसने तुमपर ह़राम (अवैध) किया है, वह मुर्दार, रक्त और सुअर का मांस है और जिसपर अल्लाह के सिवा दूसरे का नाम लिया गया[1] हो, फिर जो भूख से आतुर हो जाये, इस दशा में कि वह नियम न तोड़ रहा[2] हो और न आवश्यक्ता से अधिक खाये, तो वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
﴿وَلَا تَقُولُوا لِمَا تَصِفُ أَلْسِنَتُكُمُ الْكَذِبَ هَٰذَا حَلَالٌ وَهَٰذَا حَرَامٌ لِتَفْتَرُوا عَلَى اللَّهِ الْكَذِبَ ۚ إِنَّ الَّذِينَ يَفْتَرُونَ عَلَى اللَّهِ الْكَذِبَ لَا يُفْلِحُونَ﴾
और मत कहो -उस झूठ के कारण, जो तुम्हारी ज़ुबानों पर आ जाये- कि ये ह़लाल (वैध) है और ये ह़राम (अवैध) है, ताकि अल्लाह पर मिथ्यारोप[1] करो। वास्तव में, जो लोग अल्लाह पर मिथ्यारोप करते हैं, वे (कभी) सफल नहीं होते।
﴿مَتَاعٌ قَلِيلٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ﴾
(इस मिथ्यारोपन का) लाभ तो थोड़ा है और उन्हीं के लिए (परलोक में) दुःखदायी यातना है।
﴿وَعَلَى الَّذِينَ هَادُوا حَرَّمْنَا مَا قَصَصْنَا عَلَيْكَ مِنْ قَبْلُ ۖ وَمَا ظَلَمْنَاهُمْ وَلَٰكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ﴾
और उनपर, जो यहूदी हो गये, हमने उसे ह़राम (अवैध) कर दिया, जिसका वर्णन हमने इस[1] से पहले आपसे कर दिया है और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे।
﴿ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ عَمِلُوا السُّوءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابُوا مِنْ بَعْدِ ذَٰلِكَ وَأَصْلَحُوا إِنَّ رَبَّكَ مِنْ بَعْدِهَا لَغَفُورٌ رَحِيمٌ﴾
फिर वास्तव में, आपका पालनहार उन्हें, जो अज्ञानता के कारण बुराई कर बैठे, फिर उसके पश्चात् क्षमा याचना कर ली और अपना सुधार कर लिया, वास्तव में, आपका पालनहार इसके पश्चात् अति क्षमी, दयावान् है।
﴿إِنَّ إِبْرَاهِيمَ كَانَ أُمَّةً قَانِتًا لِلَّهِ حَنِيفًا وَلَمْ يَكُ مِنَ الْمُشْرِكِينَ﴾
वास्तव में, इब्राहीम एक समुदाय[1] था, अल्लाह का आज्ञाकारी एकेश्वरवादी था और मिश्रणवादियों (मुश्रिकों) में से नहीं था।
﴿شَاكِرًا لِأَنْعُمِهِ ۚ اجْتَبَاهُ وَهَدَاهُ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ﴾
उसके उपकारों को मानता था, उसने उसे चुन लिया और उसे सीधी राह दिखा दी।
﴿وَآتَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً ۖ وَإِنَّهُ فِي الْآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ﴾
और हमने उसे संसार में भलाई दी और वास्तव में वह परलोक में सदाचारियों में से होगा।
﴿ثُمَّ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ أَنِ اتَّبِعْ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا ۖ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ﴾
फिर हमने (हे नबी!) आपकी और वह़्यी की कि एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म का अनुसरण करो और वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
﴿إِنَّمَا جُعِلَ السَّبْتُ عَلَى الَّذِينَ اخْتَلَفُوا فِيهِ ۚ وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَحْكُمُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ﴾
सब्त[1] (शनिवार का दिन) तो उन्हीं पर, निर्धारित किया गया, जिन्होंने उसमें विभेद किया। और वस्तुतः, आपका पालनहार उनके बीच उसमें निर्णय कर देगा, जिसमें वे विभेद कर रहे थे।
﴿ادْعُ إِلَىٰ سَبِيلِ رَبِّكَ بِالْحِكْمَةِ وَالْمَوْعِظَةِ الْحَسَنَةِ ۖ وَجَادِلْهُمْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ ۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَنْ ضَلَّ عَنْ سَبِيلِهِ ۖ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ﴾
(हे नबी!) आप उन्हें अपने पालनहार की राह (इस्लाम) की ओर तत्वदर्शिता तथा सदुपदेश के साथ बुलाएँ और उनसे ऐसे अंदाज़ में शास्त्रार्थ करें, जो उत्तम हो। वास्तव में, अल्लाह उसे अधिक जानता है, जो उसकी राह से विचलित हो गया और वही सुपथों को भी अधिक जानता है।
﴿وَإِنْ عَاقَبْتُمْ فَعَاقِبُوا بِمِثْلِ مَا عُوقِبْتُمْ بِهِ ۖ وَلَئِنْ صَبَرْتُمْ لَهُوَ خَيْرٌ لِلصَّابِرِينَ﴾
और यदि तुम लोग बदला लो, तो उतना ही लो, जितना तुम्हें सताया गया हो और यदि सहन कर जाओ, तो सहनशीलों के लिए यही उत्त्म है।
﴿وَاصْبِرْ وَمَا صَبْرُكَ إِلَّا بِاللَّهِ ۚ وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُ فِي ضَيْقٍ مِمَّا يَمْكُرُونَ﴾
और (हे नबी!) आप सहन करें और आपका सहन करना अल्लाह ही की सहायता से है और उनके (दुर्व्यवहार) पर शोक न करें और न उनके षड्यंत्र से तनिक भी संकुचित हों।
﴿إِنَّ اللَّهَ مَعَ الَّذِينَ اتَّقَوْا وَالَّذِينَ هُمْ مُحْسِنُونَ﴾
वास्तव में, अल्लाह उन लोगों के साथ है, जो सदाचारी हैं और जो उपकार करने वाले हैं।
الترجمات والتفاسير لهذه السورة:
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